Aurangzeb History: आखिरी दिनों में औरंगजेब खुद से ही नफरत क्यों करने लगा था?
February 26, 2025 | by Deshvidesh News

विक्की कौशल की फिल्म छावा इन दिनों चर्चा में है, जिसमें छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े बेटे संभाजी महाराज की वीरता, साहस और बलिदान की प्रेरक कहानी दिखाई गई है. साथ ही मुगलों के आखिरी सम्राट औरंगजेब की क्रूरता की दिल दहला देने वाली कहानी भी दिखाई गई है. औरंगजेब की क्रूरता का वर्णन करते हुए, यह बताया गया है कि उसने अपने भाइयों को भी मरवा दिया था और वह अपने बेटों पर भी भरोसा नहीं करता था. अपने शासनकाल में उसने बेइंतहा खून-खराबा किया और इस्लामिक नजरिये से शासन चलाने के लिए तमाम मंदिरों को तोड़ा, हिंदुओं के लिए कई तरह के सख्त नियम बनाए.
हालांकि, अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में जब औरंगजेब का शरीर जर्जर, बूढ़ा और लाचार हो गया, तब वह हर तरफ से खुद को बेसहारा महसूस करने लगा. अंततः मृत्यु शैय्या पर पड़कर उसने अपनी जिंदगी का अंत किया.
औरंगजेब अपने हीं खून खराबे की आग में जलता रहा था. हांलाकि, फिल्म छावा में औरंगजेब के जिंदगी के इस हिस्से कहानी नहीं दिखाई गई है. लेकिन अमेरिकी इतिहासकार स्टेनली अल्बर्ट वोलपर्ट ने अपनी किताब A New History of India और रामकुमार वर्मा ने अपनी किताब ‘औरंगज़ेब की आखिरी रात’ में इस बात का जिक्र किया है. जिसके मुताबिक मृत्यू शैय्या पर पड़े औरंगजेब ने अपने आखिरी दिनों में अपने बेटे आजम शाह और मोहम्मद कामबख्श को ऐसे कई खत लिखे जिनसे से ये जाहिर होता है कि अपने नफरत की आग में बेतहाशा कत्ले आम मचाने वाला औरंगजेब आलमगीर अपनी जिंदगी की आखिरी दिनों में अपने आप से हीं नफरत करने लगा था.
औरंगजेब के खत बेटे आजम शाह और मोहम्मद कामबख्श के नाम
औरंगजेब ने खत में लिखा, ‘अब मैं बूढ़ा और दुर्बल हो हो चुका हूं. जब मेरा जन्म हुआ था तो मेरे करीब बहुत से लोग थे. लेकिन अब मैं अकेला जा रहा हूं. मैं नहीं जानता मैं कौन हूं और इस संसार में मैं क्यों आया हूं. मुझे आज उन लम्हों का दुःख है जिन लम्हों में मैं अल्लाह की इबादत को भुलाता रहा. मैंने लोगों का भला नहीं किया. मेरा जीवन ऐसे ही निरर्थक बीत गया. भविष्य को लेकर मुझे कोई उम्मीद नहीं रह गई है. ज्वर अब उतर गया है. लेकिन शरीर में अब सूखी चमड़ी के अलावा कुछ रह नहीं गया है. इस दुनिया में मैं कुछ भी लेकर नहीं आया था. लेकिन अब पापों का भारी बोझ लेकर यहां से जा रहा हूं. मैं नहीं जानता की अल्लाह मुझे क्या सजा देगा. मैनें लोगों को जितने भी दुख हैं. वो हर पाप और बुराई जो मुझसे हुआ है. उसका परिणाम मुझे भुगतना होगा. बुराइयों में डूबा हुआ मैं गुनहगार, वली हज़रत हसन की दरगाह पर एक चादर चढ़ाना चाहता हूं, अपनी पाप की नदी में डूबा हुआ. मैं रहम और क्षमा की भीख मांगना चाहता हूं. इस पाक काम के लिए मैंने अपनी कमाई का रुपया अपने बेटे आज़म के पास रख दिया है. उससे रुपये लेकर ये चादर चढ़ा दी जाय. टोपियों की सिलाई करके मैंने चार रूपये दो आने जमा किये हैं. यह रक़म महालदार लाइलाही बेग के पास जमा है. इस रकम से मुझ गुनहगार पापी का कफन खरीदा जाय. कुरान शरीफ की नकल लिखकर मैंने तीन सौ पांच रूपये जमा किये हैं. मेरे मरने के बाद यह रकम फक़ीरों में बांट दी जाय. यह पवित्र पैसा है इसलिये इसे मेरे कफ़न या किसी भी दूसरी चीज़ पर न ख़र्च किया जाय. नेक राह को छोड़कर गुमराह हो जाने वाले लोगों को आगाह करने के लिये मुझे खुली जगह पर दफ़नाना कर मेरा सर खुला रहने देना, क्योंकि परवरदिगार परमात्मा के दरबार में जब कोई पापी नंगे सिर जाता है, तो उसे ज़रूर दया आ जाती होगी.
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