क्या हुआ था IIT बाबा अभय सिंह के बचपन में, कैसे पैरेंट्स का आपसी रिस्ता बदल सकता है बच्चे का जीवन
January 16, 2025 | by Deshvidesh News

“जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय, मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय.” अर्थात जीते जी ही मरना अच्छा है, अगर कोई मरना जाने तो, मरने के पहले ही जो मर लेता है, वह अजर-अमर हो जाता है. कबीर का यह दोहा पूरी तरह से प्रयागराज के महाकुंभ में चर्चा का विषय बने IIT वाले बाबा अभय सिंह पर बिल्कुल सटीक बैठता है. आईआईटी बॉम्बे से पास आउट बाबा अभय सिंह आज अपना सब कुछ त्यागकर सन्यास के रास्ते पर चल पड़े हैं. क्या आप सोच सकते हैं कि इतने अच्छे एकेडमिक करियर के बाद कोई संत बन जाए? बिल्कुल नहीं! आखिर क्यों एक होनहार लड़का बैरागी बन गया और इस चमक धमक वाली दुनिया से उनका वास्ता ही उठ गया? जहां उनकी उम्र वाले लोग बड़ी-बड़ी कंपनियों में जॉब करने का सपना देखते हैं, अपना घर परिवार बसाने की बातें करते हैं वही एक निराला सा लड़का अपने घर-परिवार को छोड़कर एक ऐसे रास्ते पर कैसे चल पड़ा जहां ना कोई ग्लैमर है, न किसी से कोई उम्मीद और कुछ पाने की ताहत.
इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए एनडीटीवी ने IIT बाबा अभय सिंह से बात की, जिसमें उन्होंने अपने जीवन में हुए इन बदलावों के पीछे का कारण अपने घर में माता-पिता के कलेश को बताया. अभय सिंह कहते हैं कि, “जब यह सब कुछ घर में हो रहा होता है तो एक बच्चा ये समझ नहीं पाता है कि ये चल क्या रहा है. उस समय आप असहाय होते हैं. उस समय आपको यह पता नहीं होता है कि इस स्थिति में आपको कैसे रिएक्ट करना है, क्योंकि न तो आपकी समझ उस समय विकसित होती है और न ही आपके पास उस समय कोई और सहारा होता है.”
बाबा अभय सिंह की इन बातों से जहन में कुछ सवाल उभरकर आते हैं. क्या वाकई घरेलू हिंसा या परिवारिक कलेश का बच्चे पर इतना गंभीर प्रभाव पड़ सकता है?
घर को अक्सर एक ऐसी जगह माना जाता है, जहां बच्चे खुद को सुरक्षित और सहज महसूस करते हैं. लेकिन, जब घर में हिंसा या माता-पिता के बीच झगड़े का माहौल होता है, तो इसका गहरा असर बच्चों के मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक विकास पर पड़ता है, खासकर तब जब बच्चे उम्र में छोटे और नासमझ होते हैं.
1. भावनात्मक अस्थिरता
छोटे बच्चे अपने आस-पास के माहौल को बहुत तेजी से समझने की कोशिश करते हैं, भले ही वे इसे पूरी तरह से न समझ पाएं. माता-पिता के झगड़े या घरेलू हिंसा के दौरान बच्चे असुरक्षित महसूस करने लगते हैं. यह भावना उनके अंदर डर, चिंता और अकेलेपन को बढ़ावा देती है.
2. भय और असुरक्षा की भावना
घरेलू हिंसा का शिकार केवल वही नहीं होता जो इसे झेल रहा होता है, बल्कि बच्चे भी इसका अप्रत्यक्ष रूप से शिकार बनते हैं। जब वे माता-पिता को लड़ते या एक-दूसरे पर चिल्लाते देखते हैं, तो उनके मन में एक गहरी असुरक्षा की भावना पनपती है। उन्हें लगता है कि उनका घर टूट सकता है या वे प्यार और सुरक्षा से वंचित हो सकते हैं.
3. बच्चे बेबस हो जाते हैं
कई बार बच्चे इन परिस्थितियों को समझ नहीं पाते हैं और उस समय उनको लगता है कि वे अकेला पड़ गए हैं. वे न तो कुछ कर सकते हैं और न ही किसी को अपनी परेशानी बता सकते हैं. ऐसे में बच्चे बेबस हो जाते हैं.
Watch Video: किन लोगों को होती है फैटी लिवर की बीमारी? डॉक्टर सरीन से जानिए…
Hot Categories
Recent News
Daily Newsletter
Get all the top stories from Blogs to keep track.
RELATED POSTS
View all
दिल्ली में यमुना की सफाई शुरू, कचरा हटाने के लिए नदी में उतरीं मशीनें, जानिए आगे का प्लान
February 16, 2025 | by Deshvidesh News
वेस्ट दिल्ली की 10 सीटों पर AAP, BJP और Congress ने उतारे कौन से उम्मीदवार?
January 24, 2025 | by Deshvidesh News
हार्डी संधू कौन हैं? टैक्सी, क्रिकेट और फिर सिंगिंग… जानिए क्यों लिए गए हिरासत में
February 9, 2025 | by Deshvidesh News