Mahashivratri 2025: शिव पूजन में क्यों वर्जित हैं केतकी के फूल, जानिए क्या है इसके पीछे पौराणिक कथा
February 17, 2025 | by Deshvidesh News

Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि पर पूजा करते समय भगवान शिव को कई तरह की फूल माला, फूल और बेलपत्र अर्पित किए जाते हैं. यह भी माना जाता है कि भोलेनाथ भक्तों के हर तरह के भोग और भेंट को स्वीकार करते हैं. इसलिए भोले बाबा के भक्त भी अक्सर बिना सोचे-समझे भगवान को कई तरह के फूल अर्पित कर देते हैं. परंतु सभी भक्तों को एक और मान्यता के बारे में जान लेना चाहिए. एक ऐसा भी फूल है जिसे शिवलिंग पर चढ़ाना वर्जित माना जाता है. इस फूल का नाम है केतकी का फूल. इस फूल को भगवान शिव पर क्यों अर्पित नहीं किया जाता है इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है. अगर आप भी महाशिवरात्रि पर शिव पूजन के लिए जाने वाले हैं तो इस कथा को जरूर जान लीजिए ताकि आप भी शिवलिंग पर केतकी के फूल (Ketaki Flowers) अर्पित करने की गलती न करें.
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केतकी के फूल से जुड़ी पौराणिक कथा
पं. राहुल दीक्षित के अनुसार, केतकी के फूल और भगवान शिव (Lord Shiva) की यह कथा त्रेतायुग से जुड़ी हुई है जिसका वर्णन शिव पुराण में भी मिलता है. कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए तर्क होने लगे. बात जब थोड़ी ज्यादा बढ़ गई तब भगवान शिव उनके सामने एक अग्निस्तंभ यानी कि ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए. भगवान शिव ऐसे विशाल दिव्य स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे कि उसका कोई आदि था न ही उसका कोई अंत ही दिखाई दे रहा था. भगवान शिव ने विष्णु और ब्रह्मा से कहा कि जो कोई भी इस ज्योतिर्लिंग का आदि या अंत खोजकर आएगा, वही श्रेष्ठ माना जाएगा.
आदि और अंत की शुरू हुई खोज
उस आदि और अंत को खोजने के लिए भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने वराह रूप धारण किया वो पृथ्वी के गर्भ में जाकर ज्योतिर्लिंग का आदि खोजने लगे, जबकि भगवान ब्रह्मा हंस के रूप में आकाश की ओर उड़ चले ताकि वो उसके अंत तक पहुंच सकें. विष्णु जी ने बहुत प्रयास किया लेकिन उन्हें शिवलिंग का आदि यानी कि स्टार्टिंग प्वाइंट नहीं मिला. उन्होंने शिवजी के सामने सच्चाई बताई और हार मान ली. ब्रह्मा जी आकाश में ऊपर और ऊपर तक उड़ते रहे, लेकिन उन्हें भी शिवलिंग का अंत यानी कि एंड प्वाइंट नहीं मिला. पर विष्णुजी की तरह ब्रह्माजी ने हार नहीं मानी बल्कि उन्होंने केतकी के फूल के साथ मिलकर नई कहानी बनाई.
केतकी के फूल की झूठी गवाही
पं. राहुल दीक्षित ने पौराणिक कथा के अनुसार बताया कि ब्रह्माजी को ज्योतिर्लिंग का अंत तो नहीं मिला लेकिन एक केतकी का फूल मिल गया. केतकी के फूल (Ketaki Phool) से ब्रह्माजी ने ज्योतिर्लिंग के अंत के बारे में पूछा. केतकी के फूल को भी इसकी कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन, ब्रह्माजी ने उस फूल को झूठी गवाही देने को कहा. ब्रह्माजी ने कहा कि उन्होंने ज्योतिर्लिंग का अंत ढूंढ लिया है जिसका साक्षी केतकी का फूल भी है. भगवान शिव तो स्वयं सारा सच जानते थे. उन्हें केतकी की इस झूठी गवाही पर गुस्सा आ गया और उन्होंने यह श्राप दिया कि उनके पूजन में कभी केतकी के फूल का उपयोग नहीं होगा. अलग-अलग कथाओं में ये भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने ब्रह्माजी को भी क्रोध में आकर श्राप दिया. कुछ कथाओं में कहा जाता है कि भगवान शिव ने क्रोधित होकर ब्रह्माजी का शीष काट दिया जिसके बाद से वो पंच मुख से चार मुख वाले हो गए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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