यहां बैठकर देशभर की निगरानी… जानें मॉब लिंचिंग पर मुआवजे वाली मांग पर SC ने ऐसा क्यों कहा?
February 11, 2025 | by Deshvidesh News

सुप्रीम कोर्ट में मॉब लिंचिंग और गौरक्षकों द्वारा भीड़ हिंसा के खिलाफ याचिका दायर (Supreme Court On Mob Lynching Petition) की गई थी. अदालत ने इस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. इस याचिका पर जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन की तरफ से दायर याचिका पर कहा कि दिल्ली में बैठकर हम देश के विभिन्न क्षेत्रों में मुद्दों की निगरानी नहीं कर सकते. उनके विचार में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस तरह का माइक्रो मैनेजमेंट संभव नहीं होगा. तहसीन पूनावाला फैसले में अदालत पहले ही गाइडलाइन जारी कर चुकी है. ये गाइडलाइन सभी पर बाध्यकारी हैं. प्रत्येक अधिकारी निर्देशों के पालन करने के लिए बाध्य है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति व्यथित है तो कानून के मुताबिक, सक्षम अदालत से संपर्क किया जा सकता है. अधिकारियों को कोई एक समान निर्देश जारी नहीं किया जा सकता. क्यों कि यह मुआवज़ा निर्धारित करने के विवेकाधिकार को छीन लेगा. अदालत ने कहा कि उनको लगता है कि इस तरह की सर्वव्यापी राहत की मांग करने वाली याचिका पीड़ितों के हित में नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में लिंचिंग और भीड़ हिंसा के मामलों में कथित वृद्धि, खास तौर पर ‘गौ-निगरानी’ के मामलों में कथित वृद्धि पर सुप्रीम कोर्ट के दखल की मांग की गई थी.
याचिका के विरोध में केंद्र ने क्या कहा?
SG तुषार मेहता ने कहा कि अगर कोई अपराध होता है तो ये राज्यों की जिम्मेदारी है. अब केंद्रीय कानून के अनुसार भीड़ द्वारा हत्या करना अपराध है. पूरा परिदृश्य बदल गया है. वहीं याचिकाकर्ता की ओर से वकील निजामुद्दीन पाशा ने कहा
मुद्दा यह है कि जब निजी व्यक्तियों को वाहन जब्त करने और मवेशियों की तस्करी के लिए लोगों को पकड़ने के लिए पुलिस अधिकार दिए जाते हैं तो इस तरह से निजी एजेंसियों को पुलिस अधिकार दिए जाते हैं. राज्य मशीनरी के रवैये पर गौर करने की जरूरत है और देखना होगा कि यह कितनी बेशर्मी है. इस अदालत की ओर से किसी तरह की निगरानी से मदद मिलेगी.
मॉब लिंचिंग पर एक समान मुआवजे की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग के पीडितों के लिए एकसमान मुआवजे पर भी आदेश देने की मांग से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि मुआवजा तय करना राज्य और क्षेत्राधिकार वाली अदालत का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि कानून को लागू करने के सवाल पर उन राज्यों के हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करनी चाहिए, जिन राज्यों ने इस कानून को लागू नहीं किया है.
केन्द्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने तहसीन पूनावाला मामले में गाइडलाइन जारी कर चुका है.
- BNS के तहत भी इसे अपराध घोषित किया गया है
- कानून को अपना काम करने देना चाहिए
- लोग अलग अलग मामले लेकर सुप्रीम कोर्ट आ जाते है
- जब घटनाएं होती है तब राज्य का कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि ऐसा न हो और फिर मुकदमा चलाए
- क्या इस कोर्ट में व्यक्तिगत मामलों पर गौर किया जा सकता है?
SC से याचिकाकर्ता के वकील की मांग
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जब राज्य सरकारें एफआईआर दर्ज नहीं करती है तो क्या किया जा सकता है
राज्यों में ये एक पैटर्न उभर रहा है. इस सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे में पीड़ित को पहले उचित अथॉरिटी के पास जाना चाहिए. वैसे भी हर राज्य में परिस्थिति अलग होती है. अगर तहसीन पूनावाला फैसले का पालन नहीं किया जाता है तो पीड़ित के पास कानूनी उपाय भी मौजूद है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि यहां बैठकर हम देश भर की निगरानी नहीं कर सकते और हमारे विचार में इस अदालत द्वारा इस तरह की मॉनिटरिंग संभव नहीं होगी. अगर कोई व्यक्ति पीड़ित है तो कानून के अनुसार सक्षम न्यायालय से संपर्क किया जा सकता है.
“मॉब लिंचिंग के हर मामले में मुआवजा अलग”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मॉब लिंचिंग के मामलों में उचित मुआवज़ा क्या होना चाहिए, यह हर मामले में अलग-अलग होगा और कोई एक समान निर्देश जारी नहीं किया जा सकता. ऐसा करने का मतलब होगा अधिकारियों या अदालतों के पास उपलब्ध विवेकाधिकार को खत्म करना. उदाहरण के तौर पर जब किसी व्यक्ति को साधारण चोट लगती है और दूसरे को गंभीर चोट लगती है, तो एक समान मुआवज़े का निर्देश अन्यायपूर्ण होगा.
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