भारत के आध्यात्मिक इंफ्रास्ट्रक्चर के नेतृत्व की कहानी बताता है कुंभ… गौतम अदाणी का ब्लॉग
January 27, 2025 | by Deshvidesh News

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में ‘महाकुंभ 2025’ का आयोजन जारी है. 13 जनवरी से शुरू हुए महाकुंभ में रोजाना लाखों-करोड़ों श्रद्धालु आ रहे हैं. अदाणी ग्रुप महाकुंभ में इस्कॉन के साथ मिलकर महाप्रसाद सेवा कर रहा है. अदाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी अपनी पत्नी प्रीति अदाणी के साथ 21 जनवरी को महाकुंभ पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने संगम में पूजा के बाद प्रसाद सेवा भी की थी. अब उन्होंने सोमवार को महाकुंभ पर एक ब्लॉग लिखा है. LinkedIn प्लेटफॉर्म पर लिखे अपने ब्लॉग में गौतम अदाणी ने बताया कि कैसे महाकुंभ भारत के आध्यात्मिक इंफ्रास्ट्रक्चर के नेतृत्व की कहानी दिखाता है. पढ़िए गौतम अदाणी का पूरा ब्लॉग:-
मानव जमावड़े के विशाल परिदृश्य में कुंभ मेले की तुलना किसी भी चीज़ से नहीं की जा सकती. एक कंपनी के रूप में हम इस साल महाकुंभ मेले के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं. जब भी मैं इस विषय पर चर्चा करता हूं, तो मैं हमारे पूर्वजों के दृष्टिकोण से कृतज्ञ हो जाता हूं. पूरे भारत में पोर्ट, एयरपोर्ट और एनर्जी नेटवर्क का निर्माण करने वाले शख्स के रूप में मैं महाकुंभ के विशाल आयोजन को देखकर हैरान हो जाता हूं. मेरे लिए ये ‘आध्यात्मिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ है. ये एक ऐसी ताकत जिसने सदियों तक हमारी सभ्यता को कायम रखा है.

महाकुंभ शायद दुनिया की सबसे बड़ा मैनेजमेंट केस स्टडी
जब हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ने कुंभ मेले के मैनेजमेंट की स्टडी की, तो उन्हें इसके पैमाने पर हैरानी हुई थी. एक भारतीय होने के नाते में मैं इस धार्मिक आयोजन में कुछ गहरी बातें देखता हूं: दुनिया की सबसे कामयाब पॉप-अप मेगासिटी सिर्फ संख्याओं के बारे में नहीं है. यह शाश्वत सिद्धांतों के बारे में है, जिसे हम अदाणी ग्रुप में अपनाने की कोशिश करते हैं. इस पर विचार करें: हर 12 साल में, न्यूयॉर्क से भी बड़ा एक अस्थायी शहर पवित्र नदियों के तट पर बनता है. इसके लिए कोई बोर्ड मीटिंग नहीं होती. कोई पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन नहीं होता. कोई वेंचर कैपिटल नहीं होता. बिल्कुल शुद्ध, समय-परीक्षित भारतीय जुगाड़ (इनोवेशन) लगता है, जो सदियों से चली आ रही सीख से समर्थित है.
महाकुंभ नेतृत्व के 3 पिलर्स
1. आत्मा के साथ पैमाना
कुंभ में, पैमाना सिर्फ आकार का नहीं है. ये पैमाना इस आयोजन के प्रभाव के बारे में है. जब समर्पण और सेवा के साथ 20 करोड़ लोगों का एक समूह होता है, तो यह केवल आयोजन नहीं, बल्कि एक अनोखा आत्मिक संगम हो जाता है. जब 20 करोड़ लोग समर्पण और सेवा भाव से जुटते हैं, तो यह सिर्फ एक आयोजन नहीं बल्कि आत्माओं का अनोखा संगम होता है. इसे मैं ‘पैमाने की आध्यात्मिक अर्थव्यवस्थाएं’ कहता हूं. यह जितना बड़ा होता जाता है, यह उतना ही अधिक कुशल होता जाता है. न केवल भौतिक दृष्टि से बल्कि मानवीय और मानवता की दृष्टि से भी ये बड़ा होता है. इस पैमाने को किसी मैट्रिक्स में नहीं मापा जाता है, बल्कि इसे एकता के पलों में मापा जाता है.

2. सस्टेनेबिलिटी से पहले सस्टेनेबल बेहतर
ESG के बोर्डरूम में चर्चा का विषय बनने से पहले कुंभ मेले ने सर्कुलर इकोनॉमी सिद्धांतों की प्रैक्टिस की. नदी में सिर्फ जल का स्रोत नहीं, जीवन का प्रवाह भी है. इसे संरक्षित करना हमारे प्राचीन ज्ञान का प्रमाण है. वही नदी जो लाखों लोगों की मेजबानी करती है, कुंभ के बाद अपनी प्राकृतिक स्थिति में लौट आती है. लेकिन जाने से पहले ये लाखों श्रद्धालुओं की आत्मा को शुद्ध कर देती है. उन्हें आश्वस्त करती है कि वह अपनी सभी अशुद्धियों को खुद से साफ कर सकते हैं. शायद यहां हमारे आधुनिक विकास प्रतिमानों के लिए एक सबक है. आख़िरकार, प्रगति इसमें नहीं है कि हम धरती से क्या लेते हैं, बल्कि इसमें है कि हम इसे वापस कैसे देते हैं.
3. सेवा के माध्यम से नेतृत्व
सबसे शक्तिशाली पहलू? सिंगल कंट्रोलिंग अथॉरिटी का अभाव. सच्चा नेतृत्व आदेश देने में नहीं, सबको साथ लेकर चलने की क्षमता में होता है. विभिन्न अखाड़े, स्थानीय अधिकारी और स्वयंसेवक सद्भाव के साथ काम करते हैं. यह सेवा के माध्यम से नेतृत्व है. इसमें कहीं भी प्रभुत्व नहीं है. यह हमें सिखाता है कि महान नेता आदेश या नियंत्रण नहीं करते. वे दूसरों के लिए एक साथ काम करने और सामूहिक रूप से आगे बढ़ने के लिए परिस्थितियां बनाते हैं. सेवा साधना है, सेवा प्रार्थना है और सेवा ही परमात्मा है.
ग्लोबल बिजनेस को क्या सिखाता है कुंभ?
भारत का लक्ष्य 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना है. इस लिहाज से देखें, तो कुंभ मेला अद्वितीय अंतर्दृष्टि प्रदान करता है:

1. समावेशी विकास
प्रयागराज में चल रहा महाकुंभ मेला हर किसी का स्वागत करता है. यहां साधुओं से लेकर CEO तक, ग्रामीणों से लेकर विदेशी पर्यटकों तक सबका स्वागत होता है. यह उसका सर्वोत्तम उदाहरण है, जिसे हम अदाणी ग्रुप में ‘अच्छाई के साथ विकास’ कहते हैं.
2. आध्यात्मिक टेक्नोलॉजी
चूंकि हम डिजिटल इनोवेशन पर फक्र करते हैं. ऐसे में कुंभ हमें आध्यात्मिक प्रौद्योगिकी को भी दिखाता है. बड़े पैमाने पर मानव चेतना के मैनेजमेंट के लिए प्रणालियों का प्रदर्शन किया जाता है. यह सॉफ्ट इंफ्रास्ट्रक्चर उस युग में फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर जितना ही महत्वपूर्ण है, जहां सबसे बड़ा खतरा मानसिक बीमारी है!
3. सांस्कृतिक आत्मविश्वास
ग्लोबल होमोजिनाइजेशन (वैश्विक समरूपीकरण) के युग में कुंभ सांस्कृतिक प्रामाणिकता के रूप में खड़ा है. यह एक म्यूजियम का टुकड़ा नहीं है, बल्कि ये आधुनिकता के अनुकूल परंपरा का एक जीवंत उदाहरण है.

क्या हमारा भविष्य प्राचीन है?
जब मैं हमारे पोर्ट या सोलर फार्म्स से गुजरता हूं, तो मैं अक्सर कुंभ के सबक पर विचार करता हूं. हमारी प्राचीन सभ्यता ने केवल स्मारकों का निर्माण नहीं किया, इसने ऐसी जीवित प्रणालियां बनाईं, जो लाखों लोगों का भरण-पोषण करती हैं. आधुनिक भारत में हमें यही आकांक्षा रखनी चाहिए. हमें इंफ्रास्ट्रक्टर के साथ-साथ इकोसिस्टम का पोषण करना होगा. कुंभ भारत की अद्वितीय नरम शक्ति यानी ‘वसुदेव कुटुम्बकम्!’ का प्रतिनिधित्व करता है. यह सिर्फ दुनिया की सबसे बड़ी सभा की मेजबानी के बारे में नहीं है. यह मानव संगठन के एक स्थायी मॉडल को प्रदर्शित करने के बारे में है, जो सदियों से जीवित है.
नेतृत्व चुनौती
इसलिए आधुनिक नेताओं के लिए, कुंभ एक गहरा सवाल खड़ा करता है: क्या हम ऐसे संगठन बना सकते हैं जो न सिर्फ सालों तक नहीं, बल्कि सदियों तक चलेंगे? क्या हमारे सिस्टम न केवल पैमाने को, बल्कि आत्मा को भी संभाल सकते हैं? AI, जलवायु संकट और सामाजिक विखंडन के युग में कुंभ के सबक पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं. इनमें निम्नलिखित सभी शामिल हैं:
– सतत संसाधन प्रबंधन.
– सामंजस्यपूर्ण जन सहयोग.
– मानवीय स्पर्श वाली प्रौद्योगिकी.
– सेवा के माध्यम से नेतृत्व.
– आत्मा खोए बिना पैमाना.

आगे का रास्ता
जैसे-जैसे भारत एक महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, हमें याद रखना चाहिए कि हमारी ताकत सिर्फ इस बात में नहीं है कि हम क्या बनाते हैं, बल्कि इसमें भी है कि हम क्या संरक्षित करते हैं. कुंभ सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है. यह सस्टेनेबेल सभ्यता का एक ब्लूप्रिंट है. मेरे लिए ये एक रिमाइंडर है कि वास्तविक पैमाना बैलेंस शीट में नहीं, बल्कि मानव चेतना पर सकारात्मक प्रभाव में मापा जाता है.
कुंभ में हम भारत का सॉफ्ट पावर देखते हैं. एक ऐसी शक्ति जो विजय में नहीं, बल्कि चेतना में निहित है. प्रभुत्व में नहीं, बल्कि सेवा में निहित है. भारत की असली ताकत उसकी आत्मा में निहित है, जहां विकास सिर्फ आर्थिक ताकत नहीं; बल्कि मानवीय चेतना और सेवा का संगम है. कुंभ हमें यही सबक सिखाता है कि सच्ची विरासत निर्मित संरचनाओं में नहीं है, बल्कि उस चेतना में है, जिसे हम बनाते हैं. ये चेतना सदियों तक पनपती है.

इसलिए अगली बार जब आप भारत की विकास कहानी के बारे में सुनें, तो याद रखें कि हमारा सबसे सफल प्रोजेक्ट कोई विशाल पोर्ट या रिन्यूएबल एनर्जी पार्क नहीं है. हमारा सबसे कामयाब प्रोजेक्ट एक आध्यात्मिक सभा है, जो सदियों से सफलतापूर्वक चल रही है. संसाधनों को कम किए बिना या अपनी आत्मा खोए बिना लाखों लोगों की सेवा कर रही है. यही असली भारत की कहानी है. दुनिया को अब इसी नेतृत्व पाठ की जरूरत है.
Hot Categories
Recent News
Daily Newsletter
Get all the top stories from Blogs to keep track.
RELATED POSTS
View all
बिना पानी को हाथ लगाए आप लगी सकती हैं पूरे घर में पोछा, यहां जानिए ट्रिक
January 10, 2025 | by Deshvidesh News
पतले शरीर वाले मसल्स गेन करने के लिए 15 दिन दूध में भुना चना, खजूर और ये चीज मिलाकर खाएं और देखें कमाल
February 15, 2025 | by Deshvidesh News
आज ‘पुष्य नक्षत्र’ में कुंभ स्नान करने का मिलेगा पुण्य फल, यहां जानिए इसका महत्व
January 14, 2025 | by Deshvidesh News