Desh Videsh News.

Desh Videsh News.

Deshvidesh News

क्या हैं CAG की वे 14 रिपोर्ट्स जिन पर दिल्ली विधानसभा में आज छिड़ सकता है संग्राम 

February 25, 2025 | by Deshvidesh News

क्या हैं CAG की वे 14 रिपोर्ट्स जिन पर दिल्ली विधानसभा में आज छिड़ सकता है संग्राम

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) एक बार फिर चर्चाओं में हैं. दिल्ली की भारतीय जनता पार्टी की सरकार विधानसभा में 14 लंबित CAG रिपोर्ट्स पेश करने जा रही है. इन रिपोर्ट्स में दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार के कार्यकाल के दौरान विभिन्न परियोजनाओं और नीतियों में कथित अनियमितताओं का खुलासा होने की संभावना है. ऐसे में आइए जानते हैं कि यह क्या होता है. क्यों इसकी इतनी चर्चा है और वो 14 रिपोर्ट्स क्या है जो पेश होने वाले हैं. 

14 CAG रिपोर्ट्स क्या है? 
महालेखा परीक्षक (CAG) की 14 लंबित रिपोर्ट्स पेश की जानी हैं. ये रिपोर्ट्स पिछले आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार के कार्यकाल (2017-2022) से संबंधित हैं और इन्हें भारतीय जनता पार्टी (BJP) की नई सरकार ने सदन में लाने का फैसला किया है.  इन 14 रिपोर्ट्स में दिल्ली सरकार के विभिन्न विभागों और नीतियों की वित्तीय और प्रदर्शन जांच शामिल है. सूत्रों के अनुसार, इनमें से चार रिपोर्ट्स दिल्ली सरकार के नियंत्रक लेखा (Controller of Accounts) द्वारा तैयार की गई वित्तीय और विनियोग खाते हैं, जो 2021-22 और 2022-23 के हैं. बाकी 10 रिपोर्ट्स CAG द्वारा तैयार की गई हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों की ऑडिट करती हैं. 

दिल्ली के लिए यह रिपोर्ट क्यों महत्वपूर्ण?
CAG रिपोर्ट्स संवैधानिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये जनता के धन के उपयोग की पारदर्शिता सुनिश्चित करती हैं. इन्हें विधानसभा में पेश करना अनिवार्य है, ताकि इस पर चर्चा हो सके. दिल्ली में इन रिपोर्ट्स के पेश होने से AAP पर दबाव बढ़ सकता है, खासकर शराब नीति और शीश महल जैसे मुद्दों को लेकर पहले से ही आम आदमी पार्टी पर बीजेपी की तरफ से प्रेशर बनाया गया है. भाजपा नेताओं का दावा है कि ये रिपोर्ट्स “AAP के भ्रष्टाचार का काला चिट्ठा” खोलेंगी. वहीं, AAP का कहना है कि ये राजनीतिक हमला है और रिपोर्ट्स पहले ही केंद्र के पास थीं.  

  • दिल्ली विधानसभा में 25 फरवरी 2025 को 14 लंबित CAG रिपोर्ट्स पेश होंगी, जो AAP सरकार के कार्यकाल (2017-2022) से जुड़ी हैं.
  • 14 में से 4 रिपोर्ट्स दिल्ली सरकार के नियंत्रक लेखा द्वारा तैयार वित्तीय और विनियोग खाते (2021-22 और 2022-23) हैं, जबकि 10 रिपोर्ट्स CAG की ऑडिट हैं. 
  • CAG रिपोर्ट्स विधानसभा में पेश करना अनिवार्य है, ताकि जनप्रतिनिधि चर्चा कर सकें. 
  •  शराब नीति और शीश महल जैसे विवादों से AAP की साख दांव पर, BJP इसे भ्रष्टाचार का सबूत बताती रही है. 

क्या होता है CAG?
CAG यानी Comptroller and Auditor General of India,  एक संवैधानिक संस्था है, जिसकी स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत की गई थी.  CAG का मुख्य कार्य केंद्र और राज्य सरकारों के सभी प्राप्तियों और व्यय की जांच करना है. इसके अलावा, यह सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों, स्वायत्त निकायों और उन संस्थाओं की ऑडिट करता है, जो सरकार से पर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त करती हैं. कैग को “सार्वजनिक धन का संरक्षक” भी कहा जाता है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि जनता का पैसा सही तरीके से खर्च हो रहा है या नहीं. 

CAG की नियुक्ति कैसे होती है? 
CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और इसका कार्यकाल 6 साल या 65 साल की उम्र तक (जो भी पहले हो) होता है. इसे हटाने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के जज के समान है, जिसमें संसद के दोनों सदनों से विशेष बहुमत के साथ प्रस्ताव पारित करना जरूरी होता है. यह व्यवस्था CAG की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करती है, ताकि यह बिना किसी दबाव के सरकार की वित्तीय गतिविधियों पर नजर रख सके. वर्तमान में CAG का पदभार संजय मूर्ति संभाल रहे हैं, जिन्होंने 21 नवंबर 2024 को यह जिम्मेदारी संभाली थी.  

कैग के क्या हैं प्रमुख कार्य? 
CAG का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी धन का उपयोग पारदर्शी और वैधानिक तरीके से हो. यह लोकतंत्र में जवाबदेही का एक मजबूत आधार प्रदान करता है.यह कार्यपालिका को विधायिका के प्रति जवाबदेह बनाता है.

  • CAG की रिपोर्ट्स कई बार बड़े घोटालों को उजागर करने में अहम रही हैं.  2G स्पेक्ट्रम घोटाला, कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला और कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में CAG की रिपोर्ट्स ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया था.
  • सीएजी की रिपोर्ट्स न केवल वित्तीय अनियमितताओं को सामने लाती हैं, बल्कि नीतियों में सुधार के लिए सुझाव भी देती रही हैं.

कैग रिपोर्ट्स पर कब- कब आया है सियासी भूचाल 
कैग की रिपोर्ट ने कई बार भारतीय राजनीति में भूचाल लाया है. इन रिपोट के आधार पर कई सरकारों को परेशानी का सामना करना पड़ा है. आइए जानते हैं कब-कब आया है सियासी भूचाल. 

2G स्पेक्ट्रम घोटाला: नवंबर 2010 में CAG रिपोर्ट संसद में पेश की गई थी. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि यूपीए सरकार ने 2G स्पेक्ट्रम आवंटन में पारदर्शी बोली प्रक्रिया का पालन नहीं किया, जिससे सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपये का कथित नुकसान हुआ. यह आंकड़ा CAG के संभावित नुकसान के आधार पर था. 

बीजेपी ने इसे यूपीए सरकार के खिलाफ बड़ा हथियार बनाया.  संसद में लगातार हंगामा हुआ और विपक्ष ने तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा की बर्खास्तगी की मांग की थी.  राजा को इस्तीफा देना पड़ा और बाद में उनकी गिरफ्तारी हुई.  यह मुद्दा 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए बड़ा नैरेटिव बना. 

कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला (2012): अगस्त 2012 में CAG की एक और रिपोर्ट संसद में आई. रिपोर्ट में कहा गया कि कोयला ब्लॉकों के आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोली की जगह मनमाने ढंग से आवंटन हुआ, जिससे 1.86 लाख करोड़ रुपये का संभावित नुकसान हुआ. बीजेपी ने इसे “कोलगेट” करार दिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर सीधा हमला बोला.  सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में 204 कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद्द कर दिया और बोली प्रक्रिया को अनिवार्य किया. कई अधिकारियों और कंपनियों पर मुकदमे चले, लेकिन बड़े राजनीतिक नेताओं के खिलाफ ठोस सबूत नहीं मिले.  हालांकि कांग्रेस पार्टी की छवि पर इसका असर देखने को मिला. 

 कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला (2011): अगस्त 2011 में CAG रिपोर्ट पेश हुई. 2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में भारी अनियमितताएं पाई गईं. रिपोर्ट में आयोजन समिति पर अनुचित खर्च, ठेकों में पक्षपात और गुणवत्ता से समझौता करने के आरोप लगे. बीजेपी ने यूपीए सरकार और दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार को निशाने पर लिया. आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर सवाल उठे, और उनकी गिरफ्तारी हुई. दिल्ली में आम आदमी पार्टी के उभार के पीछे भी यह प्रमुख कारण रहा. 

ये भी पढ़ें: –

शराब घोटाला से ‘शीशमहल’ तक… दिल्ली विधानसभा में CAG रिपोर्ट से ‘आप’ सरकार के कामकाज पर उठेंगे सवाल?

 

RELATED POSTS

View all

view all
WhatsApp