अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: विकास की होड़ में हम खो रहे धरोहर, हर साल मर रही हैं कई भाषाएं
February 21, 2025 | by Deshvidesh News

किसी इंसान के जीवन में मातृभाषा की भूमिका बेहद अहम होती है. वो भाषा उसके हृदय की गहराइयों में बैठी होती है. उसकी मातृभाषा ही उसके बौद्धिक विकास की जमीन तैयार करती है. भारत में 19,500 के करीब भाषाएं और बोलियां हैं. इसमें 121 ऐसी प्रमुख भाषाएं हैं, जो 10 हजार से ज्यादा लोग बोलते हैं. हालांकि वो बोलियां जो कम संख्या में लोगों द्वारा बोली जाती है, उनके धीरे-धीरे विलुप्त होने से चिंताएं बढ़ गई हैं.
साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 121 प्रमुख भाषाएं और 544 अन्य भाषाएं हैं. इनमें से 22 भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह दी गई है. वहीं 19500 से अधिक बोलियां हैं.
सरकारी नीतियों के अनुसार कम से कम 10 हजार लोग अगर किसी भाषा को बोलते हैं, तभी उसे भाषा की सूची में शामिल किया जा सकता है.

भारत के संविधान में हर वर्ग को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार दिया गया है. हालांकि वडोदरा के भाषा शोध और प्रकाशन केंद्र के सर्वे के मुताबिक पिछले 60 साल में देश में 20 फीसदी बोलियां विलुप्त हो गई हैं.
इन वजहों से भाषा हो रही विलुप्त
देश के दूर दराज इलाके या समुद्र के कई तटीय इलाकों से लोग काम की तलाश में शहरों की तरफ़ चले गए. जिसकी वजह से उनकी भाषाएं धीरे-धीरे विलुप्त हो गई. वहीं बंजारा समुदाय के लोग भी जो अपने-अपने क्षेत्रों के मुताबिक कई तरह की बोलियां बोलते थे, उन्होंने भी बीतते समय के साथ शहरों या अन्य स्थानों की भाषा अपना ली.

भाषा विलुप्त हो जाने से उसे बोलने वाले पूरे समूह का ज्ञान भी लुप्त हो जाता है. ये एक बड़ा नुकसान है. भाषा या बोलियों के जरिए ही लोग अपनी सामूहिक स्मृति और ज्ञान को जिंदा रखते हैं, उसे बचाकर रखते हैं. इसका नुकसान सांस्कृतिक के साथ ही आर्थिक भी है. आज सभी तकनीक भाषा पर ही आधारित है, ये आर्थिक पूंजी भी है.
समुदाय नहीं बचेंगे तो भाषा भी नहीं बचेगी
भाषा बोलने वाले समुदाय नहीं बचेंगे तो भाषा भी नहीं बचेगी, इसीलिए जरूरी है कि ऐसे समुदाय को भी बचाया जाए. उन्हें विकास से जोड़ा जाए. पहाड़ी, तटीय, मैदानी, शहरी या घुमंतू सभी समुदाय के लोगों के लिए अलग योजना बनाने की जरूरत है. सभी भाषाओं को सुरक्षा मिलनी चाहिए.
भारत में कई राज्यों की अपनी भाषा है. महाराष्ट्र हो, केरल हो, गुजरात हो, तमिलनाडु हो या कर्नाटक हो या हिन्दी बोली जाने वाले बिहार-यूपी जैसे कई राजय. हालांकि शेड्यूल में सिर्फ 22 भाषाओं को ही रखा गया है. संविधान के जरिए फिलहाल इन्हें ही सुरक्षा दी गई है. जबकि जरूरत सभी भाषाओं को बगैर भेदभाव के सुरक्षा देने की है. अगर सरकार ऐसा नहीं करेगी तो धीरे-धीरे कई भाषाएं लुप्त हो जाएगी.

हालांकि हिंदी को इससे डरने की जरूरत नहीं है. हिंदी बोलने वाले लोगों की 60 करोड़ को पार कर गई है. हिंदी, चीनी और अंग्रेज़ी के बाद दुनिया में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है. हिंदी स्पेनिश से भी आगे निकल गई है.
दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है हिंदी
वर्ल्ड लैंग्वेज डेटाबेस के मुताबिक दुनिया भर की 20 सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में 6 भारतीय भाषाएं हैं, जिनमें हिंदी तीसरे स्थान पर है. दुनिया भर में 61.5 करोड़ लोग हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं. वहीं बंगाली भाषा लिस्ट में 7वें स्थान पर है. दुनिया भर के 26.5 करोड़ लोग बंगाली भाषा का प्रयोग करते हैं. 17 करोड़ लोगों के साथ 11वें नंबर पर उर्दू का स्थान है. साथ ही 9.5 करोड़ लोगों के साथ 15वें स्थान पर मराठी, 9.3 करोड़ के साथ 16वें नंबर पर तेलुगु और 8.1 करोड़ लोगों के साथ 19वें स्थान पर तमिल भाषा आती है.

दुनिया के अलग-अलग भौगोलिक इलाकों में रहने वाले 8 अरब लोग विभिन्न भाषाएं बोलते हैं. एक-दो ‘ग्लोबल लैंग्वेज’ से पूरी दुनिया का काम नहीं चल सकता. ऐसे में किसी भाषा का विलुप्त होना एक बड़े सांस्कृतिक नुकसान से कम नहीं है.
दुनियाभर में 8,324 भाषाएं बोली या लिखी जाती है
यूनेस्को का अनुमान है कि दुनियाभर में बोली या लिखी जाने वाली 8,324 भाषाएं हैं. इनमें से करीब 7,000 भाषाएं अभी भी इस्तेमाल में हैं. हालांकि भाषाओं और बोलियों के लुप्त होने की रफ्तार तेज है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि हर दो सप्ताह में दुनिया की एक भाषा विलुप्त हो रही है. ऐसे में इन लुप्त होती भाषाओं (Languages) को चलन में बनाए रखने के लिए हर साल अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है.

यूनेस्को ने 21 फरवरी 1999 को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया. औपचारिक रूप से 2008 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को मान्यता दी. यह दिन दुनिया भर में सेलिब्रेट किया जाता है. इस साल अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की 25वीं वर्षगांठ है.
क्यों चुनी गई 21 फरवरी की तारीख?
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में, ढाका यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 21 फरवरी 1952 को अपनी मातृभाषा के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए तत्कालीन पाकिस्तान सरकार की भाषायी नीति का विरोध किया. प्रदर्शनकारियों की मांग बांग्ला भाषा को आधिकारिक दर्जा देने की थी. पाकिस्तान की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसाईं, लेकिन विरोध नहीं रुका और अंत में सरकार को बांग्ला भाषा को आधिकारिक दर्जा देना पड़ा.

इस आंदोलन में शहीद हुए युवाओं को श्रद्धांजलि देने के लिए यूनेस्को ने नवंबर 1999 को जनरल कॉफ्रेंस में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का फैसला किया और 21 फरवरी की तारीख तय की गई, जिसके बाद से हर साल दुनिया भर में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाने लगा. बांग्लादेश में इस दिन को राष्ट्रीय छुट्टी घोषित किया गया है.
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