Mahakumbh 2025: क्यों बन गया इतना खास? जानिए धर्म से लेकर अर्थशास्त्र कैसे सधा
February 26, 2025 | by Deshvidesh News

Mahakumbh 2025: करीब 17 लाख की आबादी वाले शहर प्रयागराज में रिकॉर्ड बन गया. रिकॉर्ड दुनिया के सबसे बडे आयोजन को करने का. रिकॉर्ड 45 दिनों में 66 करोड़ से ज्यादा लोगों की मेजबानी का. रिकॉर्ड सनातन एकता का. रिकॉर्ड देश की एकात्मकता का. रिकॉर्ड आतिथ्य का. रिकॉर्ड समरसता का. अमीर से लेकर गरीब तक, आम से लेकर खास तक हर कोई बस एक डुबकी लगाने दौड़ा चला आया. महाशिवरात्रि पर महाकुंभ का अंतिम स्नान पर्व बुधवार को ‘हर हर महादेव’ के उद्घोष के साथ प्रारंभ हुआ और तड़के से ही श्रद्धालुओं का गंगा और संगम में डुबकी लगाना अब तक जारी है. शाम चार बजे तक 1.32 करोड़ श्रद्धालुओं के स्नान के साथ महाकुंभ में स्नानार्थियों की संख्या 66 करोड़ पार कर गई. मेला प्रशासन ने सिर्फ आज ही स्नानार्थियों पर गुलाब की 120 क्विंटल पंखुड़ियों की वर्षा कराई. ऐसा मेला प्रशासन महाकुंभ शुरू होने के समय से कर रहा है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर पवित्र स्नान की तरह महाकुंभ के अंतिम स्नान पर्व पर भी तड़के चार बजे से ही व्यवस्था की निगरानी के लिए नियंत्रण कक्ष में पहुंच गए. गोरखपुर प्रवास के चलते उनके लिए गोरखनाथ मंदिर में ही नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया, जहां वह स्नान पर्व पर पल-पल की निगरानी करते नजर आए. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और चेयरमैन रेलवे बोर्ड सतीश कुमार ने भी महाशिवरात्रि के मौके पर रेलवे स्टेशन्स की कंडीशन रेल मंत्रालय में बने वार रूम से जाना.

महाकुंभ के बड़े दिन
- 13 जनवरी पौष पूर्णिमा पर एक दिन में 1 करोड़ 70 लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया.
- 14 जनवरी मकर संक्रांति पर एक दिन में 3 करोड़ 50 लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया.
- 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर सारे रिकॉर्ड टूटे. 7 करोड़ 64 लाख लोगों ने स्नान किया.
- 3 फरवरी बसंत पंचमी को 2 करोड़ 57 लाख श्रद्धालुओं ने स्नान किया.
- 12 फरवरी माघी पूर्णिमा पर 2 करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान किया.
- 26 फरवरी यानी आज महाशिवरात्रि पर 3 करोड़ श्रद्धालुओं के स्नान करने का अनुमान है.
देश-विदेश से पहुंचे भक्त

13 जनवरी से शुरू हुआ महाकुंभ जैसे-जैसे बढ़ता गया. श्रद्धालुओं की तादाद बढ़ती गई. सारे अनुमान पीछे छूटते गए और लोगों की संख्या बढ़ती गई. उन्हें ना कोई मुश्किल रोक पाई और ना ही कोई नैरेटिव. लगातार 45 दिनों तक महाकुंभ में श्रद्धालुओं का जोश बना रहा. उम्मीदें बनी रहीं. सनातन की गंगा में डुबकी लगाने की ताजगी बनी रही. श्रद्धालु पूरे देश से आए. विदेश से भी आए. अलग-अलग विचारधाराओं के आए. अलग-अलग मतों और संप्रदायों के आए. सारी विविधताएं महाकुंभ में एकाकार हो गईं.
सुनिए ऐसे ही एक भक्त का वीडियो
#WATCH | #MahaKumbh2025 | A devotee from Germany, says, “I don’t like it (Maha Kumbh) because I love it. I feel very special and honoured to be here because this is a very special place and a special occasion… I feel blessed. I took a holy dip on Mauni Amavasya. I call myself a… pic.twitter.com/ZJGR4oaSXr
— ANI (@ANI) January 31, 2025
सरकार ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. पुलिस-प्रशासन ने पूरी ताकत झोंक दी. श्रद्धालुओं को कोई असुविधा ना हो इसका हरसंभव ध्यान रखा गया. श्रद्दालुओं के उमंग पर फूलों की बारिश की गई और भारतीय वायुसेना के जहाजों ने भी आसमान से सलाम किया.मेला कराने में सरकारी बजट 7500 करोड़ के क़रीब था. इस बजट के अलावा इन्फ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट में भी लगभग इतना ही ख़र्च आया. यानी औसतन 15,000 करोड़ का ख़र्च मेले पर आया. यूपी सरकार का अनुमान है कि यूपी की इकॉनमी में तीन लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा का फ़ायदा हुआ है. इसके आकलन का आधार प्रति श्रद्धालु पांच हज़ार रुपयों के औसत ख़र्च से किया गया है. यानी लगभग 67 करोड़ श्रद्धालु और प्रति श्रद्धालु पांच हज़ार के ख़र्च से कुल आय 3 लाख 35 हज़ार करोड़ की अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी का अनुमान है.
महाकुंभ का अर्थशास्त्र

हिंदू धर्म में कुंभ मेला हर 12 साल में चार पवित्र स्थलों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक पर बारी-बारी से आयोजित किया जाता है, लेकिन इस बार साल 2025 का कुंभ मेला खास था. ये मौका 12 साल बाद नहीं, बल्कि 144 साल बाद आया था. ये महाकुंभ इसलिए भी ख़ास था, क्योंकि 144 साल के बाद महाकुंभ का उल्लेख विशेष ज्योतिषीय या खगोलीय घटना की ओर संकेत करता है. कुंभ मेले का आयोजन ग्रहों और नक्षत्रों की विशिष्ट स्थिति के आधार पर किया जाता है. कुंभ मेला तब आयोजित होता है, जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक विशिष्ट स्थिति में होते हैं, लेकिन जब बृहस्पति मकर राशि में और सूर्य व चंद्रमा अन्य शुभ स्थानों पर होते हैं, तब महाकुंभ का समय बनता है और यह संयोग हर 144 वर्षों में एक बार आता है. इस संयोग को विशेष रूप से शुभ और दिव्य माना जाता है. हर 144 साल में एक दुर्लभ खगोलीय घटना होती है, जो कुंभ मेले को विशिष्ट बनाकर महाकुंभ बना देती है.
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