अमेरिका से खनिज डील यूक्रेन की ‘मजबूरी’, ट्रंप को ना-ना करते जेलेंस्की क्यों मान गए?
February 27, 2025 | by Deshvidesh News

क्या रूस-यूक्रेन युद्ध अपने आखिरी पड़ाव में जा रहा है? जिस तरह अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप रूस के साथ शांति समझौते को लेकर संजीदा हैं, इसकी उम्मीद बढ़ती जा रही है. लेकिन इसके बावजूद अभी भी कई ऐसे वैरिएबल एक-एक कर सामने आ रहे हैं जो किसी भी पल इस स्थिति को बदलने की कूवत रखते हैं. एक ऐसा ही वैरिएबल बनकर सामने आया है खनिज. हां जी आपने सही सुना. रूस-यूक्रेन युद्ध में अब खनिज तुरूप का इक्का बनता दिख रहा है.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पहले ट्रंप को ऑफर दिया. कहा कि रूस अपने कब्जे वाले यूक्रेनी क्षेत्र में मौजूद दुर्लभ खनिजों में अमेरिकी निवेश के लिए तैयार है. अब पुतिन के इस नहले पर अब जेलेंस्की ने दहला मारा है. यूक्रेन की खनिज संपदा तक अमेरिका की पहुंच वाली डील को अंतिम रूप देने के लिए राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की शुक्रवार, 28 फरवरी को डोनाल्ड ट्रंप से मिलने के लिए तैयार हैं.
सबसे बड़ा सवाल यही कि अमेरिका के साथ ऐसी कोई डील यूक्रेन के लिए ‘मौका-मौका’ है या उसकी मजबूरी? कल तक डील से इंकार करने वाले जेलेंस्की अब इसके लिए मान क्यों गए हैं? आखिर ट्रंप यूक्रेन के इन खनिजों को क्यों पाना चाहते हैं? ये खनिज रेयर या दुर्लभ क्यों हैं, इनसे होता क्या है?
शुरुआत इसी बात से कि इस खनिज डील को लेकर अब तक क्या कुछ हुआ है?
Ukraine minerals deal: अमेरिका-यूक्रेन के बीच कैसी डील हो रही है?
राष्ट्रपति जेलेंस्की अमेरिका के साथ यूक्रेन की खनिज संपदा को लेकर एक समझौता करने जा रहे हैं. इसके लिए वो शुक्रवार, 28 फरवरी को अमेरिका का दौरा करेंगे और व्हाइट हाउस में ट्रंप से मिलेंगे. बुधवार को अपनी पहली कैबिनेट बैठक के बाद खुद ट्रंप ने इस बात की पुष्टि की थी. इससे पहले ट्रंप बोल चुके हैं कि इस डील के मसौदे पर यूक्रेन राजी हो गया है और इस डील की कीमत लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर हो सकती है.
हालांकि इन सभी पॉजिटिव बातों के साथ ट्रंप ने कुछ ऐसा भी कहा जो यूक्रेन और जेलेंस्की के लिए पॉजिटिव तो कतई नहीं है. ट्रंप ने कहा है कि समझौते के तहत अमेरिका यूक्रेन को किसी तरह की महत्वपूर्ण सुरक्षा गारंटी नहीं देगा. जबकि पिछले कई दिनों से जब दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही थी तो जेलेंस्की डील के बदले यूक्रेन के लिए अमेरिका की तरफ से सुरक्षा गारंटी की मांग कर रहे थे.

Photo Credit: (फोटो- POTUS/X)
ट्रंप यूक्रेन के साथ खनिज पर डील क्यों करना चाहते हैं?
ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद से इस बात पर जोर दिया है कि रूस के खिलाफ जंग में अमेरिका ने यूक्रेन की हद से अधिक मदद की है और उसे बदले में कुछ नहीं मिला है. ट्रंप चाहते हैं कि इन तीन सालों में अमेरिका ने यूक्रेन की जो आर्थिक और सामरिक मदद की है, उसके बदले में यूक्रेन उसे खनिज दे.
इस महीने की शुरुआत में, उन्होंने व्हाइट हाउस में रिपोर्टरों से बात करते हुए कहा कि वह चाहते हैं कि युद्ध में वाशिंगटन ने यूक्रेन को जो 375.8 बिलियन डॉलर भेजे हैं, ठीक उतना ही उसे मिले. इसके लिए उन्होंने ‘इक्वलाइजेशन’ शब्द का प्रयोग किया.
इस डील की चाहत के पीछे सिर्फ यह वजह नहीं है कि ट्रंप मदद के बदले पैसा चाहते हैं. दरअसल अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वे के अनुसार, 2024 में अमेरिका अपनी दुर्लभ खनिज की 80 प्रतिशत जरूरतों के लिए चीन, मलेशिया, जापान और एस्टोनिया पर निर्भर था. ट्रंप चाहते हैं कि यह निर्भरता अब खत्म हो और अमेरिका अपने दम पर उसे पा सके. उनका यह प्रयास अमेरिका को बड़ी तकनीक (बिग टेक) का केंद्र बनाने के उनके एजेंडे का हिस्सा है. 17 दुर्लभ खनिजों में से हरेक का उपयोग इंडस्ट्री में किया जाता है और इसे लाइट-बल्ब से लेकर गाइडेड मिसाइलों तक, रोजमर्रा और हाई टेक्नोलॉजी वाले उपकरणों में लगाया जाता है.
अगर सिर्फ यूक्रेन की बात करें तो उसके पास दुनिया के कुल खनिजों का 5% है. इसके सबसे अधिक प्रोडक्टिव माइंस से लोहा, टाइटेनियम, मैग्निशियम और जिरकोनियम का उत्पादन होता है.

क्या खनिज डील पर ट्रंप की शर्तों को मानना यूक्रेन के लिए मजबूरी है?
एक शब्द में कहें तो हां. कम से कम जो दृश्य सामने आ रहा है, उससे तो यही लगता है. जेलेंस्की ने यह दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी कि उन्हें डील तब तक करने में कोई दिलचस्पी नहीं, जब तक की अमेरिकी इसके एवज में सुरक्षा की गारंटी दे. उन्होंने रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मैं ऐसी डील पर साइन नहीं करूंगा जिसकी कीमत यूक्रेनवासियों की 10 पीढ़ियों को चुकानी पड़े.
सोमवार को तो जेलेंस्की ने यहां तक कहा कि वह शांति के लिए अपने पद से इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं, लेकिन बदले में मांग की कि यूक्रेन को अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के तरीके के रूप में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) की सदस्यता दी जानी चाहिए.
लेकिन वाशिंगटन ने किसी तरह की सुरक्षा गारंटी और यूक्रेन को NATO की सदस्यता देने से इंकार कर दिया है. ट्रंप ने तो NATO की सदस्यता देने से साफ इंकार करते हुए यहां तक कह दिया कि यूक्रेन की इसी चाहत की वजह से यह युद्ध शुरू हुआ.
तो सवाल वहीं कि जब ट्रंप इतना सुना रहे हैं, अपनी शर्त पर डील थोप रहे हैं, तब भी जेलेंस्की डील पर क्यों राजी हो रहे हैं. मजबूरी है. ट्रंप किसी कीमत पर रूस से शांति समझौता करना चाहते हैं और वह यूक्रेन तथा पूरे यूरोप को बाइपास करके सीधे पुतिन से बात कर रहे हैं. उधर रूस ने भी ट्रंप को ऑफर दे दिया है कि उसके कब्जे वाले यूक्रेन में जो दुर्लभ खनिज मौजूद हैं, उनमें निवेश के लिए अमेरिका आए. यानी रूस खुद भी अमेरिका को पार्टनर बनाना चाहता है. इसने यूक्रेन की परेशानी और बढ़ा दी है. यूक्रेन जानता है कि अमेरिका के साथ के बिना वह इस युद्ध में कहीं नहीं टिकेगा. ऐसे में यूक्रेन की मजबूरी है कि ट्रंप जो कहें, और जहां तक संभव हो, वो माने.
दुर्लभ खनिज क्या होते हैं?
दुर्लभ खनिज 17 धातुओं का एक समूह है, जिनमें से अधिकांश भारी हैं, जो वास्तव में दुनिया भर में पृथ्वी की परत में प्रचुर मात्रा में हैं. इनमें से कुछ के नाम हैं डिस्प्रोसियम, नियोडिमियम और सेरियम. 2024 में संयुक्त राज्य भूवैज्ञानिक सर्वे ने अनुमान लगाया कि दुनिया भर में 110 मिलियन टन दुर्लभ खनिज हैं. इसमें से 44 मिलियन टन चीन में है और वो अब तक दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है. इसके अलावा ब्राजील में 22 मिलियन टन, वियतनाम में 21 मिलियन टन, रूस में 10 मिलियन और भारत में 7 मिलियन टन का अनुमान है. इन धातुओं के खनन के लिए बहुत केमिकल के उपयोग की आवश्यकता होती है. इस वजह से भारी मात्रा में जहरीला कचरा निकलता है और इससे कई पर्यावरणीय आपदाएं होती हैं.
हालांकि इन खनिजों की अहमियत बहुत है. जैसे यूरोपियम का प्रयोग फ्लोरोसेंट-लाइट बनाने और रडार सिस्टम में किया जाता है. सेरियम कांच को चमकाने के काम आता है और इसका प्रयोग ऑटोमोबाइल कैटेलिटिक कन्वर्टर्स में किया जाता है. लैंथेनम का उपयोग तेल को रिफाइन करने में किया जाता है.
कुल मिलाकर कंप्यूटर, बैटरी और अत्याधुनिक इनर्जी टेक्नोलॉजी विकसित करने वाले इंडस्ट्रीज के लिए ये आवश्यक रणनीतिक धातुएं हैं.
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