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33 सालों तक की रामलला की सेवा, सत्येंद्र दास कैसे बने राम मंदिर के पुजारी 

February 12, 2025 | by Deshvidesh News

33 सालों तक की रामलला की सेवा, सत्येंद्र दास कैसे बने राम मंदिर के पुजारी

अयोध्या राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने बुधवार को लखनऊ एसजीपीजीआई में अंतिम सांस ली. वह लंबे समय से अस्वस्थ थे और एसजीपीजीआई में उनका इलाज चल रहा था. 2 फरवरी को सत्येंद्र दास को अयोध्या के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां से बेहतर इलाज के लिए उन्हें पहले ट्रामा सेंटर और फिर लखनऊ एसजीपीजीआई रेफर किया गया था. अस्पताल प्रशासन द्वारा जारी हेल्थ बुलेटिन के अनुसार वह मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी गंभीर बीमारियों से भी ग्रस्त थे.

33 सालों से राम मंदिर के पुजारी

आचार्य सत्येंद्र दास को राम मंदिर निर्माण के आरंभ से ही मुख्य पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था और वह श्री राम जन्मभूमि के पूजा कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं. सत्येन्द्र दास पिछले 33 सालों से राम मंदिर के पुजारी थे, उन्होंने हर दौर में रामलला की पूजा की. टाट से लेकर अस्थायी मंदिर और फिर ठाठ से भव्य मंदिर में रामलला के विराजने पर भी, उन्होंने रामलला की सेवा की. उनके रहते ही राम मंदिर 5 जुलाई 2005 में आतंकी हमला भी हुआ था उन्हें 1992 मैं रामलला की सेवा का मौका मिला.

कैसे बनें राम मंदिर के पुजारी

सत्येंद्र दास ने ही बताया था कि सब कुछ जीवन में सामान्य चल रहा था. 1992 में रामलला के पुजारी लालदास थे. उस समय रिसीवर की जिम्मेदारी रिटायर जज पर हुआ करती थी. उस समय जेपी सिंह बतौर रिसीवर नियुक्त थे. उनकी फरवरी 1992 में मौत हो गई तो राम जन्मभूमि की व्यवस्था का जिम्मा जिला प्रशासन को दिया गया. तब पुजारी लालदास को हटाने की बात हुई. उस समय विनय कटियार बीजेपी के सांसद थे. वे VHP  के नेताओं और कई संतों के संपर्क में थे. उनसे सत्येंद्र दास का घनिष्ठ संबंध था. सबने उनके नाम का निर्णय किया.

100 रुपये में करते थे काम

तत्कालीन VHP अध्यक्ष अशोक सिंघल की भी सहमति मिल चुकी थी. जिला प्रशासन को इस बात की जानकारी दी गई और इस तरह 1 मार्च 1992 को वे राम जन्म भूमि मंदिर के मुख्य पुजारी बन गएं .उन्हें अपने साथ 4 सहायक पुजारी रखने का अधिकार भी दिया गया. शुरूआत में उन्हें 100 रुपए पारिश्रमिक बतौर पुजारी मिलता था. सत्येंद्र दास सहायता प्राप्त स्कूल मे भी पढ़ाते थे ,वहां से भी तनख्वाह मिलती थी. ऐसे में मंदिर में बतौर पुजारी सिर्फ 100 रुपए पारिश्रमिक मिलता था. 2007 में वे टीचर के पद से रिटायर हुए.

 

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