भारत 2025-26 में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा: RBI
February 21, 2025 | by Deshvidesh News

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के लेटेस्ट मासिक बुलेटिन के अनुसार, भारत 2025-26 में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था (Indian Economy) बना रहेगा. रिपोर्ट में बताया गया है कि हाई-फ्रिक्वेंसी इंडीकेटर दर्शाते हैं कि 2024-25 की दूसरी छमाही में भारत की आर्थिक गतिविधि में तेज़ी देखी जा रही है और आगे भी यह रफ्तार बने रहने की संभावना है.
GDP ग्रोथ अनुमान और बजट का असर
वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, भारत की जीडीपी ग्रोथ (GDP Growth) स्थिर रहने की उम्मीद है. IMF और विश्व बैंक (World Bank) ने भारत की ने भारत की जीडीपी वृद्धि दर (GDP Growth Rate) क्रमशः 6.5% और 6.7% रहने का अनुमान लगाया है.
सरकार ने केंद्रीय बजट 2025-26 में घरेलू आय और खपत बढ़ाने के साथ-साथ पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure) पर भी फोकस किया है. बजट में पूंजीगत व्यय/जीडीपी अनुपात (Capex to GDP Ratio) को 4.1% से बढ़ाकर 4.3% करने का लक्ष्य रखा गया है.
खुदरा मुद्रास्फीति और मांग में सुधार
जनवरी में खुदरा महंगाई दर (Retail Inflation) घटकर 4.3% पर आ गई, जो पिछले पांच महीनों का सबसे निचला स्तर है. इसका कारण सब्जियों की कीमतों में आई गिरावट है.सब्जियों की कीमतों में गिरावट ने इसमें अहम भूमिका निभाई है.ग्रामीण और शहरी मांग में सुधार देखा गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आय बढ़ने से मांग में तेजी देखी गई है. FMCG कंपनियों की ग्रामीण बिक्री में तीसरी तिमाही में 9.9% की वृद्धि दर्ज की गई, जो पिछली तिमाही के 5.7% से कहीं ज्यादा है. जबकि शहरी मांग 5% बढ़ी
औद्योगिक गतिविधियां और निवेश में बढ़ोतरी
परचेसिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) के अनुसार, औद्योगिक गतिविधियों (Industrial Activities) में सुधार हुआ है. ट्रैक्टर बिक्री, ईंधन की खपत और हवाई यात्रियों की संख्या बढ़ रही है, जो मजबूत अर्थव्यवस्था की ओर इशारा करता है.
निजी निवेश और बाजार में उतार-चढ़ाव
रिपोर्ट के अनुसार, निजी निवेश स्थिर बना हुआ है और चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा स्वीकृत प्रोजेक्ट्स की लागत लगभग 1 लाख करोड़ रुपये रही.
वैश्विक व्यापार और भू-राजनीतिक स्थिति (Global Trade and Geopolitical Scenario) की अनिश्चितता के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की बिकवाली देखी गई, जिससे भारतीय बाज़ार प्रभावित हुआ. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के बिक्री दबाव और मजबूत अमेरिकी डॉलर के कारण शेयर बाजारों में गिरावट आई. अमेरिकी डॉलर की मजबूती के चलते रुपये में कमजोरी दर्ज की गई. जिससे भारतीय रुपया (Indian Rupee) भी अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तरह कमजोर हुआ है.
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