पढ़ने की उम्र में कोयला ढोने की मजबूरी, धनबाद के खदानों में काम कर रहे बच्चों का जीवन संवारने की मुहिम
March 2, 2025 | by Deshvidesh News

झारखंड का धनबाद कोयले की खदानों के लिए जाना जाता है. यहां की खदानों में दिन-रात काम होता रहता है. लेकिन गरीबी यहां का एक काला सच है. कोयला खदानों के मजदूरों की कमाई बेहद कम है. ऐसे में उनके बच्चों को भी काम करना पड़ता है. झरिया के कोयला खदान के पास रोज कई बच्चे सर पर कोयले की बोरी लादे चढ़ाई करते नजर आते हैं. पढ़ने-लिखने की उम्र में इन बच्चों के सिर पर कोयले की बोरियों का बोझ है. हालांकि यहां के बच्चों को बेहतर बनाने की एक कोशिश भी शुरू हुई है.
एनडीटीवी की टीम जब इन खदानों के पास पहुंची तो वहां मौजूद लोगों ने कहा- परिवार चलाना है. घर में दो रोटी का इंतज़ाम हो पाए, इसलिए बच्चों को इन खदानों में काम करना पड़ रहा है. बोरे में भरकर कोयला लाने के लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं. क्या करें मजबूरी है.
खदानों से कोयला लाने वाले इन बच्चों को कोल स्कैवेंजर कहा जाता है. ये काम करके दिन में इन्हें 5 से 7 सौ रुपये मिल जाते हैं. कोयला ढो रहे एक बच्चे ने बताया कि मां-बाप के पास इतने पैसे नहीं हैं. इसलिए हमें भी खदानों में काम करना पड़ रहा है.
माना जाता है कि करीब 20 हज़ार बच्चे इस काम में लगे हैं. अक्सर इन्हें खदान मालिक या पुलिस से मार भी पड़ जाती है. ये बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं. लेकिन कोशिश की जा रही है कि इनकी ज़िंदगी में सुधार आए. इसी तरह की एक कोशिश रिटायर्ड टीचर पिनाकी दास ने की है. पिनाकी दास इस इलाके में रहने वाले बच्चों को पढ़ाते हैं.
पिनाकी दास ने कहा कि यहां के बच्चों को देखकर काफी तकलीफ हुई. फिर सोचा क्यों नहीं इन्हें पढ़ाया जाए. यहां के कई बच्चों में गजब की प्रतिभा है. मेरी कोशिश है कि पढ़-लिख कर बच्चे आगे निकले. पिनाकी दास ने पास में ही एक छोटी सी जगह में बच्चों के लिए क्लासरूम बनाया है. जहां ये बच्चे पढ़ते हैं.
ये अच्छी पहल है कि बच्चों को शिक्षा देने की कोशिश हो रही है ताकि वो खदान में न जाएं. लेकिन सवाल ये भी है कि अगर ये काम नहीं करेंगे तो घर में चूल्हा कैसे जलेगा. सरकार को पहले इस समस्या से निपटना होगा तभी इन बच्चों या उनके परिवारों की जिंदगी सुधर सकती है.
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