दाऊद इब्राहिम की संपत्ति पर नीलामी में बोली लगाने वालों का हुआ ये हश्र
January 11, 2025 | by Deshvidesh News

Dawood Ibrahim Threat: अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को भारतीय जांच एजेंसियां पिछले चार दशकों से पकड़ने में नाकाम रही हैं, लेकिन उसकी गैरकानूनी सरगर्मियों पर रोक लगाने और उसके गिरोह को नुकसान पहुंचाने की कोशिशें हमेशा जारी रहीं. इसी मकसद से सरकार ने साल 2000 से इनकम टैक्स क़ानून और सफेमा के तहत उसकी जायदादों की नीलामी शुरू की. दिसंबर 2000 में पहली नीलामी का ऐलान हुआ, लेकिन खौफ के चलते कोई बोली लगाने नहीं आया. मीडिया ने इसे इस अंदाज़ में पेश किया कि भले ही दाऊद कराची में बैठा हो, लेकिन उसका खौफ अभी भी मुंबई पर हावी है.
कुछ महीनों बाद फिर नीलामी हुई, जिसमें दिल्ली के शिवसैनिक और वकील अजय श्रीवास्तव ने बोली लगाई और नागपाड़ा इलाके में दाऊद की दो दुकानें खरीद लीं. श्रीवास्तव ने कहा कि उनका मकसद यह पैग़ाम देना था कि दाऊद जैसे भगोड़े से डरने की जरूरत नहीं. हालांकि, नीलामी जीतने के बाद भी 25 साल गुजरने के बावजूद वो इन दुकानों पर कब्जा हासिल नहीं कर सके. ये दुकानें दाऊद की बहन हसीना पारकर के कब्जे में थीं, जिन्होंने दुकानें खाली करने से सीधा इनकार कर दिया.
दिल्ली के भाइयों का हाल
दिल्ली के कारोबारी जैन भाइयों की दास्तान भी कुछ ऐसी ही है. साल 2001 में, पीयूष जैन और हेमंत जैन ने ताड़देव इलाके में दाऊद की उमेरा इंजीनियरिंग वर्क्स नाम की 144 वर्गफुट की दुकान नीलामी में खरीदी, लेकिन जब वह इसका पंजीकरण कराने पहुंचे तो उन्हें मना कर दिया गया. यह कहकर कि यह जायदाद केंद्र सरकार के तहत आती है और केंद्र सरकार के अधीन रही संपत्ति का किसी निजी व्यक्ति के नाम पर रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकता है. कई सालों की दौड़धूप और सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने के बाद मामला आगे बढ़ा.
कब्जे को लड़ रहे
23 साल की देरी के बाद, जब रजिस्ट्रेशन का रास्ता साफ हुआ, तो रजिस्ट्रार ने उनसे बढ़े हुए स्टांप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन फीस और जुर्माने के तौर पर 1 लाख 54 हजार रुपये की मांग की, जबकि संपत्ति की कीमत सिर्फ 2 लाख रुपये थी. जैन भाइयों ने अदालत का रुख किया, लेकिन तारीख़ पे तारीख़ लगती रही. आखिरकार उन्होंने मजबूरी में यह रकम अदा कर दी. दिसंबर 2024 में आखिरकार उनके नाम पर जायदाद का रजिस्ट्रेशन हुआ, लेकिन अब उनकी असल लड़ाई इस जायदाद पर कब्जा हासिल करने की है.
दाऊद की जायदादों पर कब्जा करना हमेशा एक मुश्किल और खतरनाक काम रहा है. 2016 में, पाकमोडिया स्ट्रीट के रेस्तरां पर बोली लगाने वाले पत्रकार एस. बालकृष्णन को छोटा शकील ने धमकी दी और उन पर हमला कराने की साजिश की, जिसे वक्त रहते पुलिस ने नाकाम कर दिया.
मदद की जरूरत
हुकूमत भले ही नीलामी का इंतज़ाम करती है, लेकिन नीलामी जीतने वालों को अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है. उन्हें पंजीकरण और कब्जा हासिल करने के लिए खौफ और मुश्किलात का सामना करना पड़ता है. पीयूष जैन ने यह मांग की है कि हुकूमत नीलामी के बाद जायदाद पर कब्जा दिलाने तक बोली लगाने वालों का साथ दे, ताकि वह बेखौफ होकर इस अमल को पूरा कर सकें.
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