तलाक के बाद पति से मिले एलिमनी पर पत्नी को भी भरना होगा टैक्स? जानिए क्या कहता है कानून
February 13, 2025 | by Deshvidesh News

Alimony Taxation Rules: आजकल कई तलाक के मामलों में पति को सिर्फ एलिमनी (गुजारा भत्ता) ही नहीं, बल्कि अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा भी पत्नी को देना पड़ रहा है.तलाक के बाद आर्थिक रूप से कमजोर साथी, खासकर पत्नी, के जीवनयापन में मदद के लिए एलिमनी (गुजारा भत्ता) दी जाती है. यह राशि पति द्वारा दी जाती है ताकि पत्नी अपने खर्च पूरे कर सके और वित्तीय रूप से सुरक्षित रह सके. लेकिन कई लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि क्या पत्नी को इस रकम या संपत्ति पर टैक्स भरना होगा? क्या एलिमनी पर टैक्स के अलग नियम हैं? आइए जानते हैं…
तलाक के बाद पत्नी को मिलने वाले एलिमनी पर टैक्स (Is Alimony In India Taxable) देना होगा या नहीं, यह सवाल कई लोगों के लिए बड़ा कंफ्यूजन पैदा करता है. भारतीय आयकर अधिनियम के तहत, तलाक के बाद पत्नी को मिलने वाली एलिमनी को आम तौर पर टैक्सेबल इनकम नहीं माना जाता है.हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में एलिमनी पर टैक्स लग सकता है.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, एलिमनी का टैक्सेबल होना इस बात पर निर्भर करता है कि वह कैसे और किस फॉर्म में दिया गया है. एलिमनी को तीन अलग-अलग तरीकों से दिया जा सकता है – एकमुश्त राशि (लम्पसम पेमेंट), नियमित मासिक या वार्षिक भुगतान (रेकरिंग पेमेंट), और संपत्तियों के ट्रांसफर के रूप में. इन सभी कैटेगरी में टैक्स नियम अलग-अलग हो सकते हैं.
1. एकमुश्त राशि (लंपसम पेमेंट):
अगर एलिमनी एकमुश्त राशि (Lumpsum Alimony) के तौर पर दी जाती है, तो इसे आमतौर पर टैक्स-फ्री माना जाता है. इस तरह की रकम को “कैपिटल रिसीट” माना जाता है और इसे इनकम नहीं माना जाता. बॉम्बे हाई कोर्ट ने Princess Maheshwari Devi of Pratapgarh vs CIT (1983) मामले में स्पष्ट किया था कि एकमुश्त एलिमनी को इनकम नहीं, बल्कि एक कैपिटल एसेट के ट्रांसफर की तरह देखा जाना चाहिए. हालांकि, अगर यह पेमेंट आपसी सहमति से हुई डील का हिस्सा है, तो इसे चुनौती दी जा सकती है.
2. नियमित मासिक या वार्षिक भुगतान (रेकरिंग पेमेंट):
अगर तलाक के बाद पत्नी को नियमित अंतराल (हर महीने या सालाना) पर एलिमनी (Recurring Alimony) मिलती है, तो इसे पूंजीगत प्राप्ति (capital receipt) नहीं माना जाता, बल्कि इसे “आय” के रूप में गिना जाता है और इस पर टैक्स लगाया जाता है. दिल्ली हाईकोर्ट ने भी ACIT बनाम मीनाक्षी खन्ना केस में यह फैसला दिया था कि अगर तलाक समझौते के तहत पत्नी मासिक गुजारा भत्ता छोड़कर एकमुश्त रकम लेती है, तो इसे टैक्स के दायरे में नहीं रखा जाएगा. लेकिन अगर यह राशि मासिक या वार्षिक रूप से मिलती है, तो इसे “Income from Other Sources” माना जाएगा और पत्नी को इस पर टैक्स देना होगा.
3. संपत्तियों के ट्रांसफर के रूप में:
- अगर तलाक के दौरान या पहले पति-पत्नी के बीच संपत्ति का ट्रांसफर होता है, तो टैक्स की स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि ट्रांसफर कब हुआ.
- अगर संपत्ति तलाक से पहले ट्रांसफर होती है, तो इसे गिफ्ट माना जाता है और यह टैक्स-फ्री होती है. हालांकि, इस संपत्ति से होने वाली इनकम (जैसे किराया) उस व्यक्ति की इनकम में जोड़ी जाती है जिसने संपत्ति ट्रांसफर की है.
- तलाक के बाद, पति-पत्नी “रिलेटिव्स” की कैटेगरी में नहीं आते हैं. ऐसे में संपत्ति का ट्रांसफर टैक्सेबल हो जाता है. साथ ही, इस संपत्ति से होने वाली इनकम पर भी टैक्स देना होता है.
तलाक के बिना गुजारा भत्ता
अगर पति-पत्नी बिना तलाक लिए अलग रहते हैं और पत्नी को गुजारा भत्ता मिलता है, तो इसका टैक्स स्टेटस इस बात पर निर्भर करता है कि यह भुगतान किस आधार पर किया जा रहा है.अगर यह कोर्ट ऑर्डर या लिखित समझौते का हिस्सा है, तो इसे टैक्सेबल माना जाएगा. अगर यह बिना किसी कानूनी घोषणा के दिया गया है, तो इसे गिफ्ट माना जाएगा और टैक्स से छूट मिलेगी.
क्या एलिमनी देने वाले को टैक्स छूट मिलती है?
इसा जवाब है नहीं, नहीं, एलिमनी देने वाले व्यक्ति को इस पर कोई टैक्स छूट नहीं मिलती. बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, पति की सैलरी से सीधे पत्नी को दी गई रकम भी पति की इनकम के तहत टैक्सेबल होगी. इसे पर्सनल ओब्लिगेशन माना जाता है और इसका फायदा टैक्स छूट के रूप में नहीं लिया जा सकता.
क्या कहता है कानून?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इनकम टैक्स एक्ट, 1961 में एलिमनी पर टैक्सेशन को लेकर स्पष्ट नियम नहीं हैं. बॉम्बे हाई कोर्ट ने 1983 में सुझाव दिया था कि इस पर स्पष्ट नियम बनाए जाने चाहिए. हालांकि, अब तक इस दिशा में कोई बदलाव नहीं हुआ है. तलाक से जुड़े एलिमनी के मामलों में हर केस अलग होता है. इसलिए इसे तय करने के लिए कोर्ट के फैसलों और इस मामले से जुड़े एक्पसर्ट की राय पर निर्भर करना पड़ता है.
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