
बात करते हैं केरल की. सालों से वहां जाने का प्रोग्राम बना रहा था मगर मौका नहीं मिल पा रहा था. इस बार करीब दस दिन की छुट्टी लेकर केरल जाने का मौका मिला. इस ब्लॉग में इसी बात की चर्चा करेंगे कि यदि आपको केरल जाने का मौक़ा मिला तो क्या करें? कहां जाए और क्या ना करें? केरल कोई जगह भर नहीं है यह एक अहसास है. आप भी इसी भावना से अपनी छुट्टी का आनंद लीजिए.
मैंने अपने सफर की शुरुआत कोच्चि से की. दिल्ली और अन्य जगहों से कोच्चि हवाई जहाज या ट्रेन से एणार्कुलम पहुंचा जा सकता है. कोच्चि में आप एक या दो दिन रुक सकते हैं या वहां से सीधे मुन्नार भी जा सकते हैं. हम कोच्चि में दो दिन रुके मसाले खरीदे. वहां पूरी एक सड़क है- जहां केवल मसाले बिकते हैं.
यहां की काली मिर्च और हरी इलायची आप जरूर खरीदें. मैंने यहां से तीन लूंगी जिसे मुंडु भी कहा जाता है खरीदी. और पूरे सफर के दौरान पहना बहुत ही आरामदायक रहा. कोच्चि में आप चाइनीज़ फिसिंग नेट देख सकते हैं मगर यह सुबह दस बजे और शाम में चार-पांच बजे के आसपास होता है.

यहां यहूदियों की एक जगह है वहां भी जा सकते हैं, शापिंग कर सकते हैं. फोर्ट कोच्चि और मट्टनचेरी पैलेस भी देखने की जगह है. यहीं वास्को डी गामा का एक चर्च भी है जहां उसे दफ़नाया गया था. बाद में वास्को डी गामा की अस्थियों को उनका बेटा लिस्बन ले गया. दो रात गुजारने के बाद हम मुन्नार के लिए निकल पड़े, करीब 4-5 घंटे के बाद आप मुन्नार में होते हैं.
मुन्नार एक वक्त में अंग्रेज़ों के लिए हिल स्टेशन था. रास्ते में वाटर फॉल भी पड़ते हैं जो हमें सूखे हुए दिखे. कोच्चि से मुन्नार का सफर अपने आप में यादगार है. अगले दिन आप मुन्नार से आगे जाए चाय बगानें की तरफ तो आप को शाहरुख़ खान की चेन्नई एक्सप्रेस की याद आएगी.
यहां का रोज गार्डन आप जाना ना भूलें. एक कैक्टस गार्डन भी है वहां भी जा सकते हैं. अगले दिन मट्टूपट्टी डैम और कुंडला लेक या डैम भी देख सकते है. दरअसल मुन्नार सुकुन भरी जगह है. यहां आप आपाधापी में नहीं, वक्त के साथ घूमें. मुन्नार से आप थेकड़ी भी जा सकते हैं, मगर हम मुन्नार से ऐल्लेपी के तरफ निकल पड़े.
ऐल्लेपी के बैकवाटर आपका स्वागत करते हैं बाहों फैलाए, यह अपने भव्य और विशाल होने का अहसास कराता है. रास्ते में धान के हरे भरे खेत वहां तक नजर आएंगें. जहां तक आपकी नजर जाती है ठीक वैसे ही जैसे पंजाब हरियाणा में सरसों के खेत नजर आते हैं. ऐलेप्पी में आप किसी अच्छे रिसोर्ट में रुकें, जो बैक वाटर के किनारे बना हो और दिन में हाउस बोट की यात्रा करें.
यहां सुबह से शाम तक हाउस बोट चलते हैं. दिन भर के हाउस बोट पर खाना और स्नैक भी दिया जाता है. मेरी आप को राय है कि आप सुबह से शाम तक हाउस बोट पर रहें और रात में अपने रिसोर्ट पर लौट आएं. वजह ये है कि शाम को वैकवाटर में हाउसबोट नहीं चलते हैं उसे किनारे लगाना पड़ता है.

हमने रात हाउसबोट में गुजारने का तय किया था जो सही निर्णय नहीं था. यहां के हाउसबोट कश्मीर की तरह एक जगह खड़े नहीं रहते इसलिए रात में भी हिलते डुलते हैं. फिर शाम के अंधेरे के बाद आप एक नाव पर अपने आप को बंधा हुआ पाते हैं. ऐलेप्पी के इस सुखद और सुकून भरे पलों को अलविदा कर अब वक्त आ गया है तिरूवनंतपुरम निकलने का.
एक बार फिर केले, रबड़, नारियल के पेड़ों के बीच से निकलते हुए हम आ पहुंचे चौबारा बीच. रास्ते में वरकला बीच पर भी रुके. वहीं खाना भी खाया बहुत ही खूबसूरत क्लीफ बीच है जैसे गोवा का अंजुना. फिर कोवलम बीच भी गए. मगर रुके चोवारा में. आप पूवार में भी ठहर सकते हैं.
तिरूवनंतपुरम आए हैं तो कन्याकुमारी जाना तो बनता है. वहां जाने से पहले अपने टैक्सी वाले को जरूर बता दें ताकि वो वहां जाने के लिए कागज बनवा लें क्योंकि कन्याकुमारी तमिलनाडु में है. तिरूवनंतपुरम से दो ढाई घंटे में कन्याकुमारी पहुंच जाएंगे. समुद्र में स्टीमर से जाएं.

तमिलनाडु सरकार की सेवा है- ज्यादा किराया नहीं है. सभी यात्री को लाइफ जैकेट दिया जाता है जितनी सीट उतने ही लोग. 10 मिनट तक विवेकानंद रॉक की यात्रा काफी रोमांचक है, दिसंबर में ही एक शीशे के पुल का उद्घाटन किया गया है जिस पर पैदल चलने का अपना ही एक अनुभव है चाहे तो आप यहां सूर्यास्त तक रूक सकते हैं फिर 9 बजे तक वापस लौट आएं, यदि आप एक रात रुक सकते हैं तो सूर्योदय का आनंद भी ले सकते हैं.
अब सवाल है कब जाया जाए. इतना जरूर कहना चाहूंगा कि फरवरी के अंत से गर्मी बढ़ने लगती है इसलिए अधिक से अधिक 15 फरवरी तक आप केरल घूमने का प्लान बना सकते हैं. मैं जहां जहां रुका वो जगह बता देता हूं कोच्चि में ओलिव डाउनटाउन में रूका शहर में है मगर एक बार डीह पुट्टू में जा कर जरूर खाएं यह केरल के एक्टर दिलीप का रेस्टोरेंट है ज्यादा मंहगा भी नहीं है.
मुन्नार में रिवूलेट रिसोर्ट, ऐलेप्पी में पलोमा बैकवाटर रिसोर्ट, एक हाउसबोट में भी रूका जिसका नाम नहीं बताना चाहूंगा और तिरूवनंतपुरम में चोवारा बीच के पास ट्रावनकोर हेरीटेज में ठहरा, सब अच्छी जगह हैं.
ट्रेवल ऐजेंसी थी केरेला होलीडेज. जिन्होंने कोच्चि से ही एक एरटीगा गाड़ी दे दी थी. जिसने कोच्चि एयरपोर्ट से लेकर तिरूवनंतपुरम एयरपोर्ट तक साथ रहा और हमारे वाहन चालक निसार ऐसे थे जो हमेशा एक और नई जगह दिखाने के लिए तैयार रहते थे. मैंने पहले ही आपसे कहा था कि केरल कोई एक जगह नहीं मगर एक अहसास है और केरल आपको कभी निराश नहीं करेगा आखिर केरल है ही gods own country.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं…
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
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