आखिर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति ने क्यों कहा कि उनका DNA भारतीय है?
January 28, 2025 | by Deshvidesh News

26 जनवरी को दिल्ली के कर्तव्य पथ से दुनियाभर में जो संदेश पहुंचा, वह आज के भारत की आन-बान और शान की कहानी कहता है. 76वें गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्राबोवो सुबियांतो, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बैठकर अपने सामने ‘स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास’ की झांकियों के अदभुत दृश्यों को देखा तो मंत्रमुग्ध हो गए. भारत की संस्कृति का इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुबियांतो पर कितना प्रभाव पड़ा, इसका जिक्र उन्होंने शाम को राष्ट्रपति भवन में आयोजित सम्मान भोज के दौरान अपने भाषण में किया. उन्होंने कहा, “मैं बताना चाहूंगा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उप-राष्ट्रपति जी… कुछ हफ़्ते पहले मैंने जेनेटिक सिक्वेंसिंग टेस्ट और डीएनए टेस्ट कराया था और उन्होंने मुझे बताया था कि मेरा डीएनए भारतीय है. हर कोई जानता है कि मैं जब भी भारतीय संगीत सुनता हूं, तो थिरकना शुरू कर देता हूं. यह ज़रूर उसी वजह से होगा.”
राष्ट्रपति सुबियांतो के इस भावनात्मक उद्गार को सुनकर हर किसी का चेहरा मुस्कान से भर उठा और सम्मान भोज का माहौल और खुशनुमा हो गया. राष्ट्रपति प्राबोवो सुबियांतो का अपने डीएनए को भारत का डीएनए बताना, एक साधारण और छोटी बात प्रतीत हो सकती है, लेकिन इन कुछ शब्दों ने भारत और इंडोनेशिया के हजारों साल के उस इतिहास को उजागर कर दिया, जिसमें भारत की हिन्दू और बौद्ध संस्कृति का मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया के साथ अटूट और अदृश्य रिश्ता रहा है. इस अदृश्य रिश्ते पर ही राष्ट्रपति प्राबोवो ने कहा कि “मेरा भारतीय डीएनए है”.
गणतंत्र दिवस समारोह और इंडोनेशिया
76वें गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्राबोवो सुबियांतो को आमंत्रित किया गया. यह एक ऐसा अवसर था जब भारत में संविधान लागू होने के 75 साल पूरे हो चुके हैं. भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगांठ की इस यात्रा में ये भी समझना जरूरी है कि पहले गणतंत्र दिवस यानि 26 जनवरी, 1950 के अवसर पर किसी के लिए यह सोचना भी अकल्पनीय था कि सैकड़ों भाषाओं, धर्मों और संप्रदायों की विभिन्नता वाले देश का भविष्य इतना सशक्त और गौरवशाली होगा, जैसा आज है. अनिश्चित भविष्य को आशंका से देखता हुआ भारत जब 26 जनवरी, 1950 को अपना पहला गणतंत्र दिवस समारोह दिल्ली में आयोजित कर रहा था, तब भी इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो ही मुख्य अतिथि थे. भारत की 75 सालों की इस यात्रा के दोनों ही प्रमुख अवसरों पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति का मुख्य अतिथि होना, आपसी सबंधों की उस प्रगाढ़ भावना को अभिव्यक्त करता है, जिसे राष्ट्रपति प्राबोवो की बातों से महसूस किया जा सकता है.
इंडोनेशिया का भारतीय डीएनए
आबादी के हिसाब से इंडोनेशिया दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है, जबकि मुस्लिम आबादी के हिसाब से ये दुनिया का सबसे बड़ा देश है. देश की कुल आबादी लगभग 28 करोड़ है. इन 28 करोड़ लोगों में करीब 90 प्रतिशत यानि लगभग 26 करोड़ लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं. इनमें भी 99 प्रतिशत सुन्नी मुसलमान हैं और 1 प्रतिशत शिया मुसलमान हैं. दुनिया में आबादी के लिहाज से चौथे सबसे बड़े देश में मात्र 1.74 प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की है, यानि करीब पचास लाख लोग हिन्दू धर्म मानने वाले हैं. ऐसे देश का राष्ट्रपति जब यह कहता है कि “मेरा डीएनए भारतीय है”, तो उसका महत्व कहीं अधिक हो जाता है.
इतिहास बताता है कि 7वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी के दौरान इंडोनेशिया के करीब चौदह हजार द्वीपों पर हिन्दू और बौद्ध राजाओं ने शासन किया. इंडोनेशिया, छोटे-छोटे द्वीपों का देश है. भारत की पौराणिक कहानियों में इंडोनेशिया का उल्लेख मिलता है, जिसे दीपांतर यानि सागर पार भारत, के नाम से जाना जाता था. 19वीं शताब्दी में यानि करीब 150 साल पहले यूरोप के इतिहासकारों ने इसे इंडोनेशिया नाम दे दिया. उसी समय से इंडोनेशिया का नाम प्रचलन में आ गया. इंडोनेशिया के विभिन्न द्वीपों में पांचवीं शताब्दी से हिंदू संस्कृति के शैव संप्रदाय का विस्तार होना शुरू हुआ और सबसे पहले यह जावा द्वीप समूह में पहुंचा. आज भी जावा द्वीप हिन्दू बहुल है. इंडोनेशिया के द्वीप समूहों पर हिन्दू और बौद्ध शासकों का शासन करीब 1000 सालों तक चला. इस द्वीप समूह का अंतिम और प्रभावशाली साम्राज्य मजामहित का था. यह साम्राज्य 1293 से 1500 ईस्वी के बीच रहा. इसके बाद इस्लाम धर्म को मानने वाले व्यापारी इन द्वीप समूहों पर आकर बसने लगे और धीरे-धीरे इन्होंने लोगों का धर्म परिवर्तन कराकर, इस्लाम धर्म का प्रभुत्व स्थापित कर दिया.
इंडोनेशिया के इस बीते इतिहास के बारे में बात करते हुए राष्ट्रपति प्राबोवो सुबियांतो ने कहा- “भारत और इंडोनेशिया का एक लंबा प्राचीन इतिहास रहा है. हमारे बीच सभ्यतागत संबंध रहे हैं, यहां तक कि हमारी भाषा का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा संस्कृत से आता है.” आगे उन्होंने यह भी कहा- “इंडोनेशिया में कई नाम वास्तव में संस्कृत के नाम हैं और हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में प्राचीन भारतीय सभ्यता का प्रभाव मज़बूत है. मुझे लगता है कि ये भी हमारे जेनेटिक्स का हिस्सा हैं.”
इंडोनेशिया में भले ही मुस्लिम आबादी 90 प्रतिशत हो, लेकिन उनकी मान्यताएं, विचार और देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा वैसी ही है, जैसी 1200 से 1500 साल पहले हुआ करती थी.
इंडोनेशिया में हिन्दू संस्कृति का अटूट प्रभाव
इतिहास के काल चक्र ने इंडोनेशिया की एक बड़ी आबादी का धर्म परिवर्तन तो करा दिया, लेकिन उनकी सोच, विचार और जीवन के प्रति नजरिया वैसा ही बना रहा, जैसा एक हिन्दू सोचता, समझता और जीता है. आज भी इंडोनेशिया में रामायण और महाभारत की कहानियों पर आधारित नाटकों का मंचन हर दिन होता है और बड़ी संख्या में लोग इन नाटकों को देखने के लिए पहुंचते हैं. रामायण और महाभारत का यहां की जीवनशैली पर कितना गहरा प्रभाव है, इसका इस बात से अंदाजा लग जाता है कि 1997 में इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में हुए दक्षिण पूर्व एशियन गेम्स का आधिकारिक लोगो भी हनुमान थे. इंडोनेशिया की राष्ट्रीय एयरलाइंस का नाम गरूड़ है. गरूड़, भगवान विष्णु का शक्तिशाली वाहन है. इंडोनेशिया में गरूड़ को एक विशेष सम्मान है, देश का राष्ट्रीय चिह्न भी गरूड़ पंचशील है. यही नहीं, इंडोनेशिया की मिलिट्री इंटेलिजेंस के प्रतीक भी हनुमान जी ही हैं. इंडोनेशिया में भगवान गणेश को बहुत सम्मान दिया जाता है. भगवान गणेश को हर बाधाओं से मुक्त करने वाला देवता माना जाता है.
कुछ साल पहले जब इंडोनेशिया की अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी थी, तो अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए बीस हजार रूपहिया की प्रिटिंग की गई और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए बीस हजार रूपहिया पर गणेश के चित्र को भी अंकित किया गया. वहां माना जाता है कि ऐसा करने से इंडोनेशिया की अर्थव्यवस्था संभल गई. भारत की मुद्रा रुपये की तरह ही इंडोनेशिया की मुद्रा भी रूपहिया है. इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता के मध्य में महाभारत युद्ध के दौरान रथ पर अर्जुन और कृष्ण के संवाद की प्रतिमा स्थित है. इस प्रतिमा को अर्जुन विजय रथ के नाम से जाना जाता है. 2018 मे प्रधानमंत्री मोदी ने इस प्रतिमा का दर्शन किया था. इंडोनेशिया में हजारों ऐसे प्रतीक और स्थान हैं, जो भारत की संस्कृति और सभ्यता के अदृश्य रिश्तों की कहानी बयां करते हैं.
औद्योगिक क्रांति से पहले भारत दुनिया में अर्थव्यवस्था और संस्कृति का सिरमौर था. इसलिए औद्योगिक क्रांति से पहले आक्रमणकारियों ने और आद्योगिक क्रांति के बाद व्यापारियों ने आधिपत्य स्थापित करने का एक अटूट सिलसिला-सा बना. आज जब भारत एक बार फिर उसी तरह अर्थव्यवस्था और संस्कृति का सिरमौर बनने की तरफ बढ़ रहा है, तो हर देश भारत के साथ जुड़कर अपना महत्व बढ़ाना चाहता है. इसलिए इंडोनेशिया के राष्ट्रपति आज गर्व से कहते हैं- “मेरा डीएनए भारतीय है.” विरासत की नींव पर आधुनिकता के साथ तेजी से आगे बढ़ रहे भारत की ताकत को इस एक बयान भर से समझा जा सकता है.
हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं…
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
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