अखिलेश यादव खेल रहे हैं या फिर राहुल गांधी ! तेजस्वी यादव क्या करेंगे
February 14, 2025 | by Deshvidesh News

दिल्ली के चुनावी नतीजों के बाद इंडिया गठबंधन के भविष्य पर तरह तरह के सवाल उठ रहे हैं. ये वही सवाल है जो हरियाणा में कांग्रेस की हार के बाद सामने आए थे. हरियाणा के बाद लगा महाराष्ट्र में विपक्षी एकता बीजेपी को रोक देगी. पर ऐसा नहीं हुआ. अब हार की हैट्रिक के बाद इसी सवाल से इंडिया गठबंधन के घटक दल जूझ रहे हैं. इस गठबंधन में कांग्रेस के रोल को लेकर सहयोगी दलों में अपनी ढपली, अपना वाला राग फार्मूला चल रहा है.
दिल्ली के बाद अगला चुनाव बिहार में हैं. इसके बाद सबसे बड़ा चुनाव यूपी में है. पर वो अबसे ठीक दो साल बाद है. बिहार और यूपी में कांग्रेस का रोल विपक्ष में साइड एक्टर की तरह है. जैसा दिल्ली में था, लेकिन यहां अलग चुनाव लड़कर कांग्रेस ने आम आदमीं पार्टी का खेल खराब किया. लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस का तालमेल आरजेडी से तो यूपी में समाजवादी पार्टी से था. यूपी में गठबंधन हिट रहा, पर बिहार जाते-जाते गठबंधन की हवा निकल गई.
चुनाव तो पहले बिहार में हैं, पर बात पहले यूपी के गुना गणित की कर लेते हैं. हाल में ही विधानसभा की दस सीटों पर उपचुनाव हुए, लेकिन कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में सीटों का तालमेल नहीं हो पाया. नौबत गठबंधन टूटने तक की आ गई थी. पर राहुल गांधी ने अखिलेश यादव को फोन कर इसे बचा लिया. कांग्रेस एक भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ीं. और पार्टी के कार्यकर्ता घर बैठ गए. नतीजा बीजेपी का पलड़ा चुनाव में समाजवादी पार्टी से भारी रहा.
दिल्ली के चुनाव में समाजवादी पार्टी की साइकिल इस बार आम आदमी पार्टी के साथ हो गई. अखिलेश यादव ने अरविंद केजरीवाल के लिए चुनाव प्रचार किया. तर्क ये दिया गया कि कांग्रेस नहीं आम आदमी पार्टी ही बीजेपी को हरा सकती है. कांग्रेस को लड़ाई में ही नहीं समझा गया, पर कांग्रेस ने वोट कटवा बनकर केजरीवाल की राजनीति मटियामेट कर दी. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अब हम साथ-साथ हैं का दम भर रहे हैं.
अखिलेश यादव ने क्या कहा
अखिलेश यादव ने आज वाराणसी में कहा कि इंडिया गठबंधन इससे सबक लेगा. मेरा मानना है कि गठबंधन आगे और भी मजबूत होगा. सब मिलकर भाजपा को रोकने का काम करेंगे. हरियाणा और महाराष्ट्र में भी गठबंधन की हार हुई है. हम इस पर मंथन कर रहे हैं. अगले चुनाव में हम और मजबूती से लड़ेंगे, पर ये राह इतना आसान नहीं है. राजनीति निर्मम है. ये कई बार रिश्तों की बलि लेती है. वैसे भी कांग्रेस का भला क्षेत्रीय दलों के नुकसान में है. दोनों का साथ कुछ समय तक के लिए ही चल सकता है. बीजेपी को रोकने के नाम पर. कांग्रेस के थिंक टैंक का मानना है कि क्षेत्रीय दलों को निपटाए बगैर पार्टी मजबूत नहीं हो सकती. अलग-अलग राज्यों में मजबूत रीजनल ताकतें किसी भी सूरत में अपनी सियासी जमीन कांग्रेस को देने के मूड में नहीं हैं.
तेजस्वी यादव क्या करेंगे
बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव का जिक्र बड़ा जरूरी है. कांग्रेस ने लड़-झगड़कर गठबंधन में आरजेडी से 70 सीटें ले ली थीं. पर कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के कारण बिहार में गठबंधन की सरकार नहीं बन पाई, जबकि आरजेडी का प्रदर्शन बढ़िया रहा था. अब क्या लालू यादव और तेजस्वी यादव फिर से वही गलती दोहराएंगे. यही कहानी यूपी में साल 2017 की विधानसभा चुनाव की है. तब कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन था. लोकसभा चुनाव में राजनैतिक समीकरण अलग होते हैं. विधानसभा चुनाव का फ़ार्मूला अलग होता है. तब तक गठबंधन का राग चलता रहेगा. पर सुर ताल की असली परीक्षा तो सीटों के बंटवारे पर होगी. तब तक सब खेल रहे हैं.
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